Sunday, June 28, 2015

ये बदमिजाज मौसम




मौसम बेईमान होता है कई बार गानों में सुना भी और जब कभी सूखा ही बीत गया  सावन या फिर जाड़े की रातें भी सर्द ना हुईं तो तंजिया लहजे में हमने कह भी दिया कि, अब मौसम पर ईमान नहीं रहा। लेकिन ये पहली बार है कि हम मौसम की बदमिजाजी भी देख रहे हैं। वाकई हमारी दुनिया में एक सिर्फ मौसम ही तो था कि जिसका भरोसा था हमें। यकीन था कि चाहे जो हो जाए, जून के दूसरे हफ्ते से पड़ती फुहारें बता ही देंती हैं कि सावन भी बस अब आने को है। और इधर बसंत पंचमी के बाद से कंपकंपाती सर्दी के दिन लौटने लगे जाते थे। खुद ब खुद तय वक्त से होता था सबकुछ। गुलाबी सर्दियों के साथ फरवरी के आखिरी दिनों में सूनी दोपहर में कोयल की हांफती सी आवाज और आम के पेड़ों पर उतरता बौर तस्दीक कर देता था कि अब दिन बड़े होते जाने हैं। दिन तो अब भी पहले से कुछ बड़े हो गए हैं, लेकिन दिन बदले नहीं है अब तक। गुलाबी ठंड की रवानगी तो छोड़िए कड़ाके की ठंड के दौर भी लौट लौट कर आ रहे हैं। मुद्दत बाद इस कदर बिगड़ा है मौसम का मूड कि छै दिन में चार मौसम बदलते दिखाई दे रहे हैं। और कभी कभी तो दिन के ही कुछ घंटो में सुबह और शाम के फासले में ही दो मौसमों का बदलाव दिखाई दे जाता है। सुबह खिली धूप कहती है कि अब जाड़े बीतने को है। लेकिन शाम ढल भी नहीं पाती कि बरसात की झड़ी लग जाती है। झड़ी भी ऐसी वैसी नहीं, सर्द दिनों में ठंडी हवाओं में लिपटी झड़ी की के साथ ओलों की बरसात। यानि सुबह गर्मी दोपहर जाड़ा और शाम ढले तक मानसूनी सी बरसात। एक दिन और तीन मौसम। मौसम का हर रंग देख चुके बुजुर्ग भी हैरान हो गए हैं कि मौसम की ये शक्ल तो कभी नहीं देखी थी। बादलों की चाल हवाओं का रूख पकड़ने वाले मौसम विभाग के पास भी बीते 88 साल में भी कोई ऐसा दिन नहीं मिलता कि जब जाड़े के दिनों में मध्यप्रदेश जैसे मैदानी इलाकों में आसमान से ओलों की शक्ल में बर्फबारी हुई हो। कुदरत खफा सी हो गई लगती है। कि जैसे किसी इंसान से तंजिया लहजे में कहते हैं उसी अंदाज में मौसम को सुनाए जा रहे हैं ताने. कि अब बस भी करो। और फिकरे कसे जा रहे हैं कि मौसम तुम तो ऐसे ना थे। वाकई कितना पाबंद था मौसम, सही वक्त पर गर्मियां बीतती थी ,वक्त से जाड़े बीत जाते थे। लेकिन अब सब गड्डम गड्ड हो गया है जैसे। कि जैसे अलग अलग मौसमों के रंग किसी ने मिलाकर फैला दिए हों जमीन और आसमान पर।  कि अब अलग करना मुश्किल है कि बरसात के महीने कौन से कहलाएंगे, जाड़े के दिन कौन से और किन महीनों में गर्मियां दस्तक देंगी। क्योंकि जब जाड़े के भी बीत जाने के दिन हैं, तो वहां बरसात ही कहां लौटी है अब तक, फिर ये कहना तो और भी मुश्किल है कि गर्मियों की सुस्ताती दोपहरें आनें में अभी कितना और वक्त लगेगा। अखबारों से लेकर सोशल साइट्स तक देखिए तो मौसम ही सुर्खियों की जगह समेटे हुए है। अखबरों की हेडलाइन्स में मौसम कई कई बरसों के रिकार्ड तोड़ रहा है। तो सोशलसाइट्स के स्टेट्स कह रहे हैं, मौसम ने तो नेताओँ को भी मात दे दी , देखिए तो बात बात पर पलटी खा जाता है।  पल में तोला रहता है तो पल में ही माशा हुआ जाता है। मौसम को बेईमान तो हम पहले ही कह चुके थे अब बदमिजाज भी कह लीजिए इसे। लेकिन मौसम की इस बदमिजाजी की वजह तलाशने जाएंगे कि तो आखिरी सिरे पर खुद को ही खड़ा पाएंगे। ये मौसम का बिगड़ा मिजाज हमारी ही बदसलूकियों का ही तो नतीजा है।  हमने ही तो की थी ना कुदरत से छेड़छाड़, लीजिए अब मौसम भी हमसे बदमिजाजी कर रहा है। 

No comments: