Sunday, June 28, 2015

राजनीति में रिश्तों का फलसफा



ये राजनीति का ताजा पैंतरा है और एकदम चोखा भी। विकास के वादे, जनता की सेवा के इरादे इन सबसे अलग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान राजनीति में रिश्तों का नया फसलफा लिख रहे हैं। बेटियंो को बचाने का अभियान चलाने वाली शिवराज सरकार की, दूसरी फिक्र अब इस प्रदेश के बुजुर्ग हैं। मुमकिन है ये देश में अपने तरह का पहला फैसला हो जिसमें किसी राज्य की सरकार अपने प्रदेश के बुजुर्गों को तीरथ कराने जा रही है। प्रदेश भर के बुजुर्गो के लिए एक मई से मध्यप्रदेश मेंमुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना शुरु हो जाएगी और सरकार अपने खर्चे पर बुजुर्गों को देश के चुनिंदा सोलह तीर्थ स्थलों के दर्शन कराएगी। सरकार की मानवीय पहल पर सवाल बेमानी है, लेकिन इतना तय है कि चुनाव के एन पहले शिवराज सिंह ने ये बड़ा दांव खेला है, अपनी सरकार को समाज के साथ खड़ा कर रहे शिवराज ने, पिछली पारी में घर परिवार पर बोझ समझी जाने वाली बेटियों को लक्ष्मी बनाया था, और चुनाव में लाड़लियों ने उन्हे जीताया भी। अब दूसरी पारी में स्मॉल हैप्पी फैमिली के फ्रेम से बाहर हो रहे बुजुर्गो की हमदर्द बनी है सरकार। सियासी नजर में, सरकार की ये दरियादिली 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को फायदा पहुंचाती दिखाई देती है। लेकिन राजनीति के नफे नुकसान से अलग समाजशास्त्री की सोच कहती है कि शिवराज सिंह चौहान की इस राजनीति में,मानवीयता का चेहरा दिखाई देता है।
घर घर से नाता जोड़ो
इसे काबिलियत कह लीजिए या शिवराज के कामकाज का अंदाज कि इस सूबे के खैरख्वाह होते हुए भी, शिवराज सिंह चौहान हमेशा से भीड़ के बीच रहने वाले एक साधारण आदमी की तरह पेश आए हैं। सरकार के प्रचार महकमें की तस्वीरों में भी वो दूर से हाथ हिलाते, आॅउच आॅफ रीच मुख्यमंत्री कभी दिखाई नहीं दिए। शिवराज ने खुद को हमेशा इस तरह से पेश किया कि आम आदमी बेझिझक बेहिचक उनसे अपना दर्द कह सके। खुद को आम आदमी से दूर रखने वाली ग्लैमर की राजनीति में अमूमन चुनावी तस्वीरों में ही नेता जनता के नजदीक दिखाई देते हैं। लेकिन शिवराज जिस नई राजनीति की पटकथा लिख रहे हैं, वहां प्रदेश की सरकार होते हुए भी वो हर घड़ी जनता के बीच दिखाई देते हैं, और हर कोशिश ऐसी करते हैं जिससे जनता और उनके बीच का फासला कुछ और कम हो जाएं। मुख्यमंत्री निवास पर बुलाई जाने वाली पंचायतें इसकी मिसाल हैं। इन पर होने वाले लाखों के खर्च पर उठते सवाल अपनी जगह है लेकिन ये पंचायतें एक सूबे के मुुिखया और उस प्रदेश के आम आदमी के बीच की दूरियों को कम करने की कामयाब कोशिश दिखाई देती हैं। फिर उसमें भी परिवार  और समाज से बेदखल बुजुर्गों की पंचायत। जिनके अपनों को उनसे बात करने का वक्त नहीं, सूबे के मुख्यमंत्री ने उनकी खैर खबर ली। मुख्यमंत्री कोई घोषणा ना भी करते तो बेघर बेदर बूढों के लिए मुख्यमंत्री की सहानुभूति ही काफी थी। पर शिवराज जानते हैं कि ये नई राजनीति का दौर है। अब पांच साल बाद जनता के बीच जाने और वोट मांगने के जमाने लद गए। अब पूरे साल वोट बढाने और उन्हे मजबूत करने की तैयारी करनी पड़ती है। शिवराज की राजनीति ऐसी ही है। वो पूरे पांच साल तैयारी करते हैं। एक वोट के सहारे पूरे घर से नाता जोड़ते हैं। सरकार के खर्च पर पलने बढने वाली बच्ची जो लाड़ली लक्ष्मी बनी है उसे वोट देने का अधिकार भी नहीं है, लेकिन शिवराज सिंह जानते थे कि बेटी का बोझ सरकार उठाएगी तो परिवार खुद ब  खुद शिवराज सरकार के लिए राह आसान बना देगा। हुआ भी यही।
सरकार का सामाजिकीकरण
आमतौर पर समाज जिन बातों को लेकर अलख जगाता आया है, मध्यप्रदेश में वो काम, अब सरकार कर रही है। चाहे फिर बेटियों को कोख के साथ घर में जगह देने का अभियान हो या बुजुर्गों को उनका हक और मान देने की कोशिश। शिवराज सरकार ने योजनाएं भी इस ढंग से प्लान की हैं, जो सीधे आम आदमी को, उनके परिवार को प्रभावित करती हैं। बेटी का ब्याह किसी भी बाप के लिए सबसे बड़ी जवाबदारी होती है, सरकार ने ये जिम्मेदारी अपने सिर ले ली। बुजुर्ग की ख्वाहिश होती है कि उम्र के आखिरी पड़ाव में उनके अपने बेटे उन्हे तीरथ कराएं, ये प्फर्ज भी अब सरकार पूरा करेगी। ये शिवराज का समाज से जुड़ने का सीधा फार्मूला है,सियासी जानकार कहते हैं जो चुनाव में अपना असर दिखाएगा।
तो फिर बुजुर्ग ही बनवाएंगे  सरकार
शिवराज सरकार ने बुजुर्गो की पंचायत बुलाकर और उनके लिए सौगातों की झड़ी लगाकर,भाजपा सरकार की जमीन पुख्ता करने के कई काम एक साथ कर लिए हैं। बुजुर्ग उम्र के जिस दौर में होते हैं, वहां, सपने,ख्वाहिशें किसी मंजिल तक पहुंचने का जुनून, सब खत्म हो चुका होता है इसलिए सिस्टम को लेकर ना कोई सवाल होते हैं, ना उम्मीदें। ऐसे में बुजुर्गों की बुनियादी जरुरत की फिक्र ही बहुत है। बुजुर्गो के लिए इतना ही काफी है कि सरकार उनके बारे में भी सोचती है। मुख्यमंत्री निवास पर बुलाई बुजुर्ग पंचायत में प्रदेश भर से भले पांच सौ हजार बुजुर्ग ही पहुंचे हो, लेकिन ये वृध्दजन पूरे प्रदेश की नुमाइंदगी कर रहे थे। कोई शक नहीं कि सरकार से अपने लिए सौगातें लेकर घर लौटे ये वृध्द,गांव की चौपालों पर, शहरों की गलियों और पुलियाओं पर शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के हक में माहौल बनाएंगे।
अम्मा, बाबूजी की चिंता
-बुजुर्गो के लिए सरकार वरिष्ठ नागरिक आयोग बनाएगी
-वरिष्ठ नागरिकों के लिए पुनर्वास नीति बनेगी
-बुजुर्गो के लिए मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना एक मई से
- देश के सोलह तीर्थ स्थानों के दर्शन
-- योजना पर खर्च, एक करोड़ के लगभग
 --हर जिले में बेसहारा बुजुर्गो के लिए वृध्दाश्रम बनेंगे
 --साल में एक दिन, वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाएगा
-- वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण और कल्याण अधिनियम लागू करने में सख्ती करेगी सरकार
 ---सरकारी दफ्तरों में बुजुर्गो के लिए अलग से खिड़की
--दीनदयाल अंत्योदय कार्ड में बुजुर्गो को अब साठ हजार तक का इलाज
समाज के साथ खड़ी, मानवीय सरकार
समाज शास्त्री ज्ञानेन्द्र गौतम कहते हैं, एक समाज शास्त्री होने के नाते और वैसे भी मैं इस बात का पक्षधर हूं कि सामाजिक सुरक्षा देना सरकार का दायित्व है, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिस तरह से बेटियों को बचाने के लिए अभियान छेड़ा,जिस तरह से बुजुर्गों के लिए सरकार ने सहानुभूति दिखाई है,तो कहीं ना कहीं, उन्होने राजनीति का मानवीय चेहरा दिखाने की कोशिश की है। मैं समझता हूं कि जहां राज्य समाज के आगे झुकता है, वहां समाज को उसका स्वागत करना चाहिए और जहां समाज के व्दारा कहीं चूक हो तो राज्य को उसमें आगे आना चाहिए ।  

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