Sunday, June 28, 2015

फिर जनता करेगी पाई पाई का हिसाब



पेट्रोल आठ रुपए पैंतालीस पैसे मंहगा हो चुका है।  पेट्रोल के दामों में अब तक का सबसे बड़ा इजाफा है ये। दिल थामे रखिए क्योंकि डीजल और रसोई गैस के दाम बढने अभी बाकी हैं। ताज्जुब ये भी है कि आम आदमी की सरकार समझकर जिसे हमने चुनकर भेजा था, वो सरकार दाम बढा रही है, और मंहगाई अपने मत्थे भी नहीं ले रही। मजबूर सरकार के लाचार नुमाइंदे कहते हैं, पेट्रोलियम कंपनियों ने दाम बढाए हमारे हाथ में अब कुछ नहीं है। तेल कंपनियों रोना रो देती हैं कि कंपनियां घाटे में हैं क्या करें। लेकिन हकीकत ये है कि सरकार की मजबूरी भी दिखावा है, और कंपनियों के आंसू भी झूठे। उल्टे तेल कंपनियां तो भारी मुनाफे में चल रही हैं। अब तक बीते दो सालों में चौदह बार पेट्रोल के दामों में इजाफा हो चुका है, और अबकि तो ऐसा इजाफा हुआ कि जो आम आदमी की कमर नहीं रीढ ही तोड़ देने वाला है। ऐसा कतई नहीं होगा कि पेट्रोल के दामों में हुई इस बेतहाशा वृध्दि के बाद अचानक जनता साईकिल की सवारी पर जाएगी। हर हाल में गाड़ी तो चलती है, लेकिन ये गाड़ी अब सुकूंन से नहीं चलेगी। और अगर आज इस बढती मंहगाई में आम आदमी को घर गृहस्थी और गाड़ी का सुकून नहीं मिला तो कल सरकार का सुकून भी छिन जाएगा,ये तय है। अभी तक सड़कों पर विपक्षी दल के कार्यकर्ता आते थे, नेता बयानों में बढती मंहगाई पर रोष जताते थे, लेकिन अब हालात बेकाबू हो चले हैं। कोई ताज्जुब नहीं कि अब देश की जनता खुद मोर्चा संभाल ले और कल सड़कों पर उतर आए। सियासी दलों को अब इन हालात को समझना होगा। केन्द्र में बैठी यूपीए सरकार अगर हालात का अंदाज नहीं लगा पा रही तो राज्य सरकारों को ही समय रहते आवाम की नब्ज पकड़ लेनी चाहिए। आम चुनाव अभी दो साल दूर हैं। लेकिन मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में तो चुनावी मौसम आ चुका है। सड़कों पर उतरकर केन्द्र की यूपीए सरकार के खिलाफ नारे लगाकर, थाली कटोरी बजाकर आपकी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। ये सबकुछ तो सियासत की औपचारिकताएं भर हैं। इसके फायदे फौरी तौर पर भी नहीं मिलने और चुनाव बाद भी नहीं। इतनी तसल्ली रखिए कि कांग्रेस अगर मंहगाई लाई है तो आम आदमी तो इसी बात से ही उससे दूर हो जाएगा और विकल्प के तौर पर विपक्ष में बैठे दल को ही तलाशेगा। लेकिन विपक्षी दलों को अगर इस मौके का सियासी फायदा उठाना है तो खुद कुछ करकेभी बताना होगा।  कम से कम मध्यप्रदेश जैसे राज्य जहां चुनाव अब नजदीक ही हैं। इन राज्यों को अपनी रणनीति बदलनी होगी, केवल सड़कों पर कांग्रेस को कोसने से काम नहीं चलेगा। मध्यप्रदेश सरकार चाहे तो इस मुफीद मौके का पूरा फायदा उठा सकती है। मध्यप्रदेश में इस समय पेट्रोल आठ रुपए पैंतालीस पैसे मंहगा हुआ है, ठीकरा पूरा केन्द्र सरकार के सिर है, ऐसे में अगर राज्य की सरकार पेट्रोल पर लगी वैट की दरें ही कुछ कम कर देती है, तो आम आदमी की जेब पर इस मंहगाई में कुछ बोझ तो कम होगा। एक ऐसे वक्त में जब आम आदमी हर तरफ से मायूस और परेशान है। राज्य सरकार से मिली ये छोटी सी राहत भी वोटर का रुख बदल सकती है। यूं भी मध्यप्रदेश उन राज्यों में शुमार है जहां वैट की दरें सबसे ज्यादा है। लंबे समय से विपक्ष में बैठी कांग्रेस सरकार पर ये आरोप लगाती रही है कि मंहगाई पर केन्द्र को कोसने वाली राज्य सरकार खुद अपने राज्य में वैट की दरें कम क्यों नहीं करती। एक साल बाद तो जनता पाई पाई का हिसाब कर ही लेगी उसके पहले अपने नंबर बढवाने का भाजपा सरकार के पास भी ये आख्रिरी मौका है। 

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