Tuesday, June 30, 2015

संस्मरण सुदर्शन से सीखा जीवन



जीवन की अंतिम सांस तक वो एक साधक ही रहे। रोज की तरह उस दिन भी सुबह सैर को ही तो निकले थे, रोज की ही तरह सुबह योग किया और योग साधना के दौरान ही आखिरी सांस ले ली। साधक समाधिस्थ हो गया। बाकी दुनिया ने कहा, पूर्व सरसंघचालक कुप्प सी सुदर्शन का अवसान हो गया। लेकिन मेरे लिए वो सिर्फ पूर्व संघ प्रमुख की सीमा में नहीं बंधे थे। सुदर्शन जी का जाना मेरी निजी क्षति है। मैने उन्हे खोया है, जिनसे मैं जीवन को उसके मूल रुप में पाना सीख रहा था। उस दोपहर की याद यूं भी हमेशा मेरी चेतना में रही और अब तो वो दोपहर मेरे जीवन का अविस्मरणीय हिस्सा बन गई है जैसे। 17 सितम्बर 2005 की दोपहर थी वो, मेरी सालगिरह का दिन, उस दिन मैं सरसंघचालक कुप्प सी सुदर्शन से जन्मदिवस पर उनका आर्शीवाद लेने गया था। मेरा सौभाग्य था कि तब वे चार दिन वो एलएनसीटी के गेस्ट हाउस में ही ठहरे थे, एलएनसीटी में तब आरएएस का अभ्यास वर्ग भी लगा था। उसी दौरान मुझे उनके साथ लंबा समय व्यतीत करने का मौका भी मिल गया।संघ, की शाखाएं  किस तरह किसी व्यक्तित्व को सांचे में ढालकर गढती है,सुदर्शन जी इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थे,  एक सच्चे स्वयंसेवक की मिसाल थे सुदर्शन। मैने उनसे मिलकर जाना था कि जीवन में एश्वर्य के लिए लगी दौड़ कितनी बेमानी है। संघ के सुप्रीमों हो जाने के बाद भी, उनके अपने जीवन में, अपनी दिनचर्या में कोई अंतर नहीं आया। तन पर धोती कुर्ता, और तय समय पर साधा भोजन। वो कहते भी थे मुझसे , जीवन अगर धन विलासता और एश्वर्य की जकड़ में आ गया तो जीवन उन्ही के इशारे पर चलेगा। लेकिन हम स्वयंसेवक हैं हमें जीवन अनुशासन के साथ अपने ढंग से जीना है। जीवन का सार ये हो कि ये जीवन किसी के काम आए। सही कहते थे सुदर्शन जी ,अवसान के बाद भी वे अपने नेत्रदान कर गए ताकि उनके जाने के बाद भी,किसी के जीवन को ज्योति मिल सके। राग व्देष से दूर सच्चाई का जीवन जीने वाला व्यक्ति संत ही होता है,भगवा बाना तो कभी नहीं पहना लेकिन सुदर्शन जी भी संत ही हो गए थे जैसे। और किसी का नहीं जानता, लेकिन मुझसे जो उन्होने कहा वो किसी संत की भविष्यवाणी की तरह सौ फीसदी सही साबित हुआ था।  सुदर्शन जी जब एलएनसीटी आए थे तो उन्होने कहा था,कोई शहर हो या संस्थान उसके करीब से अगर कोई जलधारा बहती है तो उसका, इन संस्थानों और शहरों के विकास में बहुत महत्व होता है। उन्होने लालकिले का उदाहरण भी दिया था। मुगलों के सुनहरे दौर में लाल किले के करीब से बहा करती थी यमुना। इत्तेफाक से एनएनसीटी के पास से भी एक जलधारा बहती है, और जेएन सीटी के पास से भी।  आज जब तकनीकी और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश ही नहंी देश में एलएनसीटी समूह का नाम सबसे पहले लिया जाता है, तो मुझे सुदर्शन जी की वो भविष्यवाणी सच साबित होती दिखाई देती है। 2005 के बाद फिर गिनती नहीं कि सुदर्शन जी से मेरी कितनी मुलाकातें हुईं। मेरी कोशिश होती थी कि एलएनसीटी जेएनसीटी, और नारायण श्री होम्योपैथी कॉलेज के सेवाकार्यो से जुड़े आयोजन में सुदर्शन जी की मौजूदगी रहे। और उनका बड़प्पन था कि कभी उन्होने मेरा आग्रह ठुकराया भी नहीं। एक और बात, जाने कितनी भाषाओं के ज्ञाता थे वो ,लेकिन मातृभाषा हिंदी से उनका अपार प्रेम था। मुझे याद है, भोपाल में अखबार मालिकों और संपादकों को उन्होने कहा था कि कोशिश होनी चाहिए कि हिंदी के अखबारों में अंग्रेजी का इस्तेमाल ना किया जाए।  सुदर्शन जी की ंिंचंता सिर्फ कहने के लिए नहीं थी, वो जो कहते उसे अमल में लाने कोशिश भी करते थे।
कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं,जो आपके मन मानस पर ही नहीं पूरे जीवन पर प्रभाव छोड़ जाते हैं, सुदर्शन जी का मेरे जीवन में वही स्थान था। मैने कभी उनमें अपने पिता को देखा। कभी अपने गुरु को। जीवन में जब भी खुद को किसी उलझन में पाता हूं, तो सुदर्शन जी की तरह सोचता हूं और रास्ता ढूंढ लेता हूं। तब लगता है कि ऐसी पुण्य आत्माएं हमें छोड़कर कहीं नहीं जाती, हमेशा हमारे साथ रहती हैं। भोपाल के संघ कार्यालय समिधा का, दूसरे माले पर बाईं तरफ बना सुदर्शन जी का कमरा भले खाली हो गया हो। 

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