उन मौसमों की याद में....
कश्मीर सिर्फ समाचार ही रहा कई सालों तक.., दूरदर्शन पर समाचार के आखिर मे मौसम के समाचार सुनाये जाते। जिसमे भारी
बर्फ़बारी सिर्फ कश्मीर मे ही तो होती थी. फिर पहली बार कश्मीर दिखाई भी दिया...।सरकारी मकानो वाले मेरे मोहल्ले मे जाड़े की
आमद उनके साथ ही होती . हर बरस ठिठुरते दिनों का बंदोबस्त लिए...., अपनी पोटलियों मे रेशा रेशा कश्मीर लिए...., वो मेरे
शहर आते थे पश्मीना, फिरन ,पोंचू , जाड़े के दिनों मे मोहल्ले की हर लड़की कश्मीर की कली बन जाने की ज़िद बांध लेती।
ना नाम मालूम था तुम्हारा, ना पता. हमारे लिए तुम सिर्फ कश्मीरी थे, वैसे ही जैसे हम भोपाली...वो नुक्कड़ से तीसरी लाइन को
चौथे मकान तक हर साल जाड़ों मे बेहिचक आते रहे तुम . और गुनगुनी धुप मे सुस्ताते बतियाते हम भी, तुम दिखाई ना देते तो एक
बार तो ज़िक्र कर ही लेते,सर्दियां देरी से आई हैं या झेलम एक्सप्रेस लेट है इस बार,साल दर साल चलते रहे ये सिलसिले। और तुम
हमारे लिए बदलते मौसम के क़ासिद बने रहे.
तुम तो इस बार भी पोटलियों मे वादियों की वर्दियां लिए गुज़रे होगे मेरी गली से. घर के आगे घंटी भी बजाई होगी देर तक.
पश्मीने मे लिपटा कश्मीर फिर लाये होगे इस बार भी.
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