पूरा एक महीना लगा। लंबी जद्दोजहद के बाद हुआ फैसला। लेकिन इस प्रदेश के आम आदमी के लिए मिठास मंहगी होते होते बच गई। आम आदमी को एक तसल्ली और मिल गई कि बिजली का बिल भी उसे नया झटका नहीं देगा। और तन ढंकने के दो जोड़ी कपड़े रेट युक्त तो होंगे पर वैट से अब पूरी तरह मुक्त होंगे। अब इस फैसले की तह में आते हैं,एक महीने बाद सरकार के पाले से आई ये राहत की खबर केवल जनभावनाओं का आदर हो तो ऐसा नहीं है। ये उससे भी कुछ ज्यादा है। महीने भर अपना कारोबार बंद रखने वाले कारोबारियों का दबाव तो सरकार पर था ही, इस एक महीने में, लगता है सरकार ने साल डेढ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों को भी भांप लिया था जैसा। ये जान लिया था कि अभी भले व्यापारियों की तरह इस सूबे की जनता सड़क पर नहीं आई है। लेकिन जनता जवाब तो देगी, और चुनाव के वक्त मिला एक मुश्त जवाब, मध्यप्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के, भाजपा के सपने को संकट में ला देगा। इस सोच के साथ, अगर सरकार के फैसले को देखें तो सरकार ने वैट वापिस लेकर इस प्रदेश की जनता पर कतई अहसान नहीं किया है। बल्कि वक्त रहते अपनी बड़ी भूल को सुधारा है। लेकिन सुधार की गुंजाइश तो अभी और भी है, पेट्रोल डीजल और रसोई गैस पर भी देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले में मध्यप्रदेश में वैट कर बहुत ज्यादा है। सरकार को चाहिए कि यहां भ जो चूक हुई है चुनाव के पहले उसे सुधार लिया जाए। अब सरकार से सीधे जनता पर आते हैं, पहले कारोबारियों पर। इस बार कारोबारियों ने, इस प्रदेश के व्यापारियों ने अपने तेवर दिखा दिए थे। व्यापारियों ने अपने नुकसान की भी बहुत परवाह नहीं की। सराफा कई दिनों तक बंद रहा। बंद का असर भी हुआ। सरकार पर बड़ा दबाव तो व्यापारियों का ही था। सरकार के वैट वापिस लेने के फैसले के बाद रंग गुलाल के दिनों में व्यापारियों ने पटाखों के साथ दीवाली मनाई। अब उस आम आदमी पर आइए, जिसके महीने भर के सौदे का अहम हिस्सा होती है शकर। और घर के बजट का बड़ा भाग बिजली लील जाती है। वैट वापिस हो जाने के बाद इस आम आदमी को कुछ राहत भले मिली हो लेकिन आम आदमी नाराज तो अब भी है। नाराजगी की वजह भी है, सरकार विकास के नाम पर तमाम टैक्सों के जरिए पैसा तो आम आदमी की जेब से वसूलती है। लेकिन यही पैसा है जो विकास कार्यो पर खर्च होने के बजाए पटवारियों,जेल अधीक्षकों और आईएएस अफसरों की तिजोरियों से निकलता है रिश्वत बनकर। आम आदमी की गाढ़ी कमाई काली कमाई हो जाती है। भ्रष्टाचार के मामले तो अब प्रदेश में हर दिन का तमाशा बन रहे है। टैक्सों के नाम पर अपनी जेब कटा रहा आम आदमी ये तमाशे रोज देख रहा है। तो सरकार जब जनभावनाओं का आदर करना सीख ही गई है तो इतना और करे कि पहले तो इस बात की चिंता हो कि सूबे की तरक्की के लिए जो पैसा करों के नाम पर आम आदमी की जेब से वसूला जाता है, वो विकास के कामों में ही लगे, उससे किसी सरकारी अफसर की तिजोरी ना भरी जाए। दूसरा, जब गल्ती सुधारने पर आ ही गए हैं तो वित्त मंत्री जी लगे हाथ रसोई गैस, डीजल और पेट्रोल पर भी वैट कम कर दे। आखिर जनभावनाओं का ख्याल भी तो रखना है।
Sunday, June 28, 2015
जनभावनाओं के लिए
पूरा एक महीना लगा। लंबी जद्दोजहद के बाद हुआ फैसला। लेकिन इस प्रदेश के आम आदमी के लिए मिठास मंहगी होते होते बच गई। आम आदमी को एक तसल्ली और मिल गई कि बिजली का बिल भी उसे नया झटका नहीं देगा। और तन ढंकने के दो जोड़ी कपड़े रेट युक्त तो होंगे पर वैट से अब पूरी तरह मुक्त होंगे। अब इस फैसले की तह में आते हैं,एक महीने बाद सरकार के पाले से आई ये राहत की खबर केवल जनभावनाओं का आदर हो तो ऐसा नहीं है। ये उससे भी कुछ ज्यादा है। महीने भर अपना कारोबार बंद रखने वाले कारोबारियों का दबाव तो सरकार पर था ही, इस एक महीने में, लगता है सरकार ने साल डेढ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों को भी भांप लिया था जैसा। ये जान लिया था कि अभी भले व्यापारियों की तरह इस सूबे की जनता सड़क पर नहीं आई है। लेकिन जनता जवाब तो देगी, और चुनाव के वक्त मिला एक मुश्त जवाब, मध्यप्रदेश में तीसरी बार सरकार बनाने के, भाजपा के सपने को संकट में ला देगा। इस सोच के साथ, अगर सरकार के फैसले को देखें तो सरकार ने वैट वापिस लेकर इस प्रदेश की जनता पर कतई अहसान नहीं किया है। बल्कि वक्त रहते अपनी बड़ी भूल को सुधारा है। लेकिन सुधार की गुंजाइश तो अभी और भी है, पेट्रोल डीजल और रसोई गैस पर भी देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले में मध्यप्रदेश में वैट कर बहुत ज्यादा है। सरकार को चाहिए कि यहां भ जो चूक हुई है चुनाव के पहले उसे सुधार लिया जाए। अब सरकार से सीधे जनता पर आते हैं, पहले कारोबारियों पर। इस बार कारोबारियों ने, इस प्रदेश के व्यापारियों ने अपने तेवर दिखा दिए थे। व्यापारियों ने अपने नुकसान की भी बहुत परवाह नहीं की। सराफा कई दिनों तक बंद रहा। बंद का असर भी हुआ। सरकार पर बड़ा दबाव तो व्यापारियों का ही था। सरकार के वैट वापिस लेने के फैसले के बाद रंग गुलाल के दिनों में व्यापारियों ने पटाखों के साथ दीवाली मनाई। अब उस आम आदमी पर आइए, जिसके महीने भर के सौदे का अहम हिस्सा होती है शकर। और घर के बजट का बड़ा भाग बिजली लील जाती है। वैट वापिस हो जाने के बाद इस आम आदमी को कुछ राहत भले मिली हो लेकिन आम आदमी नाराज तो अब भी है। नाराजगी की वजह भी है, सरकार विकास के नाम पर तमाम टैक्सों के जरिए पैसा तो आम आदमी की जेब से वसूलती है। लेकिन यही पैसा है जो विकास कार्यो पर खर्च होने के बजाए पटवारियों,जेल अधीक्षकों और आईएएस अफसरों की तिजोरियों से निकलता है रिश्वत बनकर। आम आदमी की गाढ़ी कमाई काली कमाई हो जाती है। भ्रष्टाचार के मामले तो अब प्रदेश में हर दिन का तमाशा बन रहे है। टैक्सों के नाम पर अपनी जेब कटा रहा आम आदमी ये तमाशे रोज देख रहा है। तो सरकार जब जनभावनाओं का आदर करना सीख ही गई है तो इतना और करे कि पहले तो इस बात की चिंता हो कि सूबे की तरक्की के लिए जो पैसा करों के नाम पर आम आदमी की जेब से वसूला जाता है, वो विकास के कामों में ही लगे, उससे किसी सरकारी अफसर की तिजोरी ना भरी जाए। दूसरा, जब गल्ती सुधारने पर आ ही गए हैं तो वित्त मंत्री जी लगे हाथ रसोई गैस, डीजल और पेट्रोल पर भी वैट कम कर दे। आखिर जनभावनाओं का ख्याल भी तो रखना है।
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