अच्छा ही हुआ कि दो साल पहले ही मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा छीन लिया गया। वरना जिस तरह से प्रदेश में हफ्ते भर के भीतर दो बाघों का शिकार हुआ है। ये घटनाएं मध्यप्रदेश के वन विभाग और सरकार को शर्मसार कर देने के लिए काफी होतीं। शर्मसार होने की वजहें तो खैर अब भी मौजूद हैं। वन्य प्राणियों की हिफाजत के लिए बनाए गए नेशनल पार्क के सुरक्षा बंदोबस्त की कलई उतर जाती है और बांधवगढ नेशनल पार्क में बाघ का शिकार हो जाता है। सप्ताह भर के भीतर मध्यप्रदेश में ही दूसरी बार फिर बाघ का शिकार होता है, वो भी कहीं दूर नहीं, भोपाल के पास कठौतिया के जंगलों में, उन जंगलों में जिन्हे अब तक सरकार फॉरेस्ट रिजर्व घोषित नहीं कर पाई। अभी बहुत दिन नहीं हुए जब पूरे देश में ये चिंता थी कि भारत में बाघ तेजी से कम हो रहे हैं। 2006 में भारत में केवल 1411 बाघ बचे रह गए थे, भारत सरकार और सामाजिक संगठनों की कोशिश से बाघों की आबादी फिर बढी और ये ग्राफ 1704 पहुंच गया। लेकिन मध्यप्रदेश जो कभी टाइगर स्टेट था, वहां देश में बढ रही बाघ की आबादी के व्युत्क्रमानुपात में हुआ सबकुछ। मध्यप्रदेश में 2006 में 300 बाघ हुआ करते थे, जो 2011 की गणना में 257 ही रह गए हैं। और ये सिलसिला अब भी थमा नहीं है,2011 में पन्ना नेशनल पार्क में गायब हुए बाघों के बाद, बांधवगढ नेशनल पार्क में एक बाघिन की दुर्घटना में चल बसी। उसी साल कान्हा नेशनल पार्क में दो बाघों की मौत हो गई। और अब फिर ताजा मामला भोपाल के पास के जंगलों का, जहां एक बाघ का शिकार हुआ और दूसरी बाघिन लापता है। हर बार बाघ की मौत के बाद जांच कमेंटियां बनती है, वन विभाग से लेकर वन मंत्री तक हरकत में आते हैं, फिर हालात जस के तस हो जाते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में बाघों की आबादी लगातार कम होने के बावजूद बाघों को बचाने के कोई सख्त कदम नहीं उठाए जाते। वन विभाग में अब भी मैदानी स्टॉफ की कमी है। जो हैं भी, वो बाघों की सुरक्षा करने के बजाए अफसरों की चाकरी में लगे हैं। एक तरफ आईटी के साथ वन विभाग हाइटेक हो रहा है, दूसरी तरफ विभाग को शिकारियों से संबंधित सूचनाएं ही नहीं मिल पाती और बाघों का शिकार हो जाता है। भोपाल के पास कठौतिया के जंगलों में हुई इस घटना के पहले भी भारत सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार को चेताया था कि मध्यप्रदेश में शिकारी सक्रीय हैं,लेकिन इसके बाद भी वन विभाग के सूचना तंत्र को खबर नहीं मिल पाई और बाघ का शिकार हो गया। मध्यप्रदेश में बाघों की इन हालात के लिए ऊपर से नीचे तक पूरा सिस्टम जिम्मेदार है। बाघों को बचाने के लिए जो गंभीरता होनी चाहिए वो कहीं नजर नहीं आती। ना अफसर मुस्तैद हैं ना विभाग के मंत्री सख्त। हाल ही में बाघ के शिकार पर प्रदेश सरकार के वन मंत्री का बयान बेहद गैरजिम्मेदाराना था, उन्होने कहा, कि छै सौ मीटर के दायरे की सुरक्षा कर पाना बेहद मुश्किल है। वन मंत्री के बयान पर जाएं तो फिर होने दीजिए बाघों का शिकार, अभी मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा छिना है, कल टाइगर इस प्रदेश में होते हैं ये पहचान भी छिन जाएगी। फिर जैसे आज की पीढी सुनती है कि ये प्रदेश कभी टाइगर स्टेट था. कल आने वाली पीढी के लिए बाघ किस्से कहानियों में ही रह जाएंगे।
Sunday, June 28, 2015
फिर कहानियों में रह जाएंगे बाघ
अच्छा ही हुआ कि दो साल पहले ही मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा छीन लिया गया। वरना जिस तरह से प्रदेश में हफ्ते भर के भीतर दो बाघों का शिकार हुआ है। ये घटनाएं मध्यप्रदेश के वन विभाग और सरकार को शर्मसार कर देने के लिए काफी होतीं। शर्मसार होने की वजहें तो खैर अब भी मौजूद हैं। वन्य प्राणियों की हिफाजत के लिए बनाए गए नेशनल पार्क के सुरक्षा बंदोबस्त की कलई उतर जाती है और बांधवगढ नेशनल पार्क में बाघ का शिकार हो जाता है। सप्ताह भर के भीतर मध्यप्रदेश में ही दूसरी बार फिर बाघ का शिकार होता है, वो भी कहीं दूर नहीं, भोपाल के पास कठौतिया के जंगलों में, उन जंगलों में जिन्हे अब तक सरकार फॉरेस्ट रिजर्व घोषित नहीं कर पाई। अभी बहुत दिन नहीं हुए जब पूरे देश में ये चिंता थी कि भारत में बाघ तेजी से कम हो रहे हैं। 2006 में भारत में केवल 1411 बाघ बचे रह गए थे, भारत सरकार और सामाजिक संगठनों की कोशिश से बाघों की आबादी फिर बढी और ये ग्राफ 1704 पहुंच गया। लेकिन मध्यप्रदेश जो कभी टाइगर स्टेट था, वहां देश में बढ रही बाघ की आबादी के व्युत्क्रमानुपात में हुआ सबकुछ। मध्यप्रदेश में 2006 में 300 बाघ हुआ करते थे, जो 2011 की गणना में 257 ही रह गए हैं। और ये सिलसिला अब भी थमा नहीं है,2011 में पन्ना नेशनल पार्क में गायब हुए बाघों के बाद, बांधवगढ नेशनल पार्क में एक बाघिन की दुर्घटना में चल बसी। उसी साल कान्हा नेशनल पार्क में दो बाघों की मौत हो गई। और अब फिर ताजा मामला भोपाल के पास के जंगलों का, जहां एक बाघ का शिकार हुआ और दूसरी बाघिन लापता है। हर बार बाघ की मौत के बाद जांच कमेंटियां बनती है, वन विभाग से लेकर वन मंत्री तक हरकत में आते हैं, फिर हालात जस के तस हो जाते हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में बाघों की आबादी लगातार कम होने के बावजूद बाघों को बचाने के कोई सख्त कदम नहीं उठाए जाते। वन विभाग में अब भी मैदानी स्टॉफ की कमी है। जो हैं भी, वो बाघों की सुरक्षा करने के बजाए अफसरों की चाकरी में लगे हैं। एक तरफ आईटी के साथ वन विभाग हाइटेक हो रहा है, दूसरी तरफ विभाग को शिकारियों से संबंधित सूचनाएं ही नहीं मिल पाती और बाघों का शिकार हो जाता है। भोपाल के पास कठौतिया के जंगलों में हुई इस घटना के पहले भी भारत सरकार ने मध्यप्रदेश सरकार को चेताया था कि मध्यप्रदेश में शिकारी सक्रीय हैं,लेकिन इसके बाद भी वन विभाग के सूचना तंत्र को खबर नहीं मिल पाई और बाघ का शिकार हो गया। मध्यप्रदेश में बाघों की इन हालात के लिए ऊपर से नीचे तक पूरा सिस्टम जिम्मेदार है। बाघों को बचाने के लिए जो गंभीरता होनी चाहिए वो कहीं नजर नहीं आती। ना अफसर मुस्तैद हैं ना विभाग के मंत्री सख्त। हाल ही में बाघ के शिकार पर प्रदेश सरकार के वन मंत्री का बयान बेहद गैरजिम्मेदाराना था, उन्होने कहा, कि छै सौ मीटर के दायरे की सुरक्षा कर पाना बेहद मुश्किल है। वन मंत्री के बयान पर जाएं तो फिर होने दीजिए बाघों का शिकार, अभी मध्यप्रदेश से टाइगर स्टेट का तमगा छिना है, कल टाइगर इस प्रदेश में होते हैं ये पहचान भी छिन जाएगी। फिर जैसे आज की पीढी सुनती है कि ये प्रदेश कभी टाइगर स्टेट था. कल आने वाली पीढी के लिए बाघ किस्से कहानियों में ही रह जाएंगे।
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