Sunday, June 28, 2015

मैच नहीं इसे जंग कहिये जनाब



भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सेमीफाइनल के बाद भारत ने मैच नहीं जंग जीत ली हो जैसे। भारत पाकिस्तान के मैच पहले भी हुए हैं। हर एक गेंद पर धड़कनें तब भी थमा करतीं। लेकिन उस वक्त ये केवल खेल होता था। खिलाड़ियों के लिये भी और मैच देखने वालों के लिये भी। लेकिन देश के आम आदमी की भावनाओं को भी कमर्शियली कैश कराने  में उस्ताद मीडिया ने अबकि क्रिक्रेट को मैदान से निकालकर सरहदों में बांट दिया। जैसे हिन्दुस्तान और पाकिस्तान मोहाली में वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में नहीं युध्द के मैदान में एक दूसरे से भिड़ने जा रहे हों। मैच के पांच दिन पहले से मीडिया ने अपना खेल शुरु कर दिया। मोहाली का महासंग्राम.. महायुध्द के सौ घँटे जैसे जुमलों के साथ ऐसी तस्वीर पेश की गई कि जैसे मैच ना जीते तो हमारे खिलाड़ी और हम  जिन्दगी ही हार जायेंगे। भारत पाकिस्तान के इस मैच का माहौल बनाने के मीडिया के इस महाअभियान का मुनाफा भी खूब हुआ।  मीडिया ने इस एक मैच से करोड़ों कमा लिये। लेकिन इसी एक मैच में खो दिया उस खेल भावना को। जिस खेल भावना के बूते पूरी दुनिया को एक साथ एक मैदान में जमा करने ओलंपिक और एशियाड  हुआ करते हैं। वो खेल भावना ही तो है जो सरहदों में बंटे मुल्कों को खेल खेल में साझा आंगन दे देती है। क्रिक्रेट को जीने वाले इस मुल्क में भारत पाकिस्तान का मैच हमेशा से हटकर  रहा है। भारतीय टीम जब पाकिस्तानी टीम से मुकाबले के लिये आई। क्रिक्रेट के शौकीन भारत के दर्शकों के लिये ये मैच खास रोमांच लिये होता था। लेकिन होता वो खेल ही था। जिन्दगी और मौत का सवाल नहीं बनता था। जैसा अबकि हुआ। क्रिक्रेट के मैदान में ये मुकाबला ग्यारह खिलाड़ियों के बूते जीता जाना था। लेकिन मीडिया की बदौलत ज्योतिषियों के अनुमान के साथ पहले ही दिखाई जाने लगी जीत और हार की तस्वीर। टीवी पर दर्शकों का  भविष्य बताने वाले ज्योतिषी भारतीय टीम की कुंडली देखने लगे। मोहाली में मैच का मुहूर्त पढ़ा जाने लगा। धोनी की ग्रहदशाओं से लेकर सचिन के राशिफल तक। सारे आकलन मैच के पहले हो गये। मीडिया ने ऐसी हवा बनाई कि दस हजार में बिकने वाला मैच का टिकट पचास हजार और पंद्रह हजार का टिकट एक लाख रुपये तक में बिक गया।  समाचारों के नाम पर सिर्फ और सिर्फ क्रिक्रेट दिखा रहे इन चैनलों की बदौलत यकीनन देश में देशभक्ति की एक लहर पैदा हुई। लेकिन बड़ी अजीब सी देशभक्ति । जो एक मैच के साथ शुरु हुई थी और मैच के साथ ही खत्म भी हो गई । तिरंगा लहराया। मोबाइल से लेकर सोशल साइट्स तक जीतो इंडिया जीतो के समूहगान होने लगे। अपनी जान हथेली पर लेकर हमारी आपकी हिफाजत करने वाले इस देश के सिपाही भी मीडिया की टीआरपी जंग से नहीं बच पाये। कुछ चैनलों में सैनिक भी नाचते गाते दिखाई दिये। धोनी की टीम की इस तरह हौसलाअफजाई करते नजर आये कि जैसे देश के सच्चे सिपाही और सपूत तो ये खिलाड़ी ही हैं।  मीडिया का ही तो असर था कि मध्यप्रदेश में इस मैच की खातिर पहले विधानसभा  स्थगित हुई और फिर सरकारी बाबूओं को इस ताकीद के साथ आधे दिन का अवकाश दे दिया गया कि वे जायें और अपने घर पर भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाली जंग का जायजा ले।प्रदेश में किसान बिजली कटौती से बेहाल है। लेकिन इस मैच की खातिर सरकार ने दो करोड़ रुपये खर्च करके इस एक मैच के लिये बिजली खरीदी। ताकी पूरे प्रदेश में मैच के दौरान लाइट ना जाये। और इस जंग का टीवी पर लाइव प्रसारण लोग देख सकें।  भारत पाकिस्तान के इस मैच के युध्द में बदल जाना केवल सड़कों पर पसरा सन्नाटा नहीं है । ना मैच की हर गेंद पर चढता उतरता रोमांच। खेल के जंग में बदल जाने का असर है  युवराज का पहली गेंद पर आउट हो जाना।  पाकिस्तानी टीम के मिसबाह , युनूस खान, और कामरान अकमल हाथ आया मास्टर ब्लास्टर का विकेट चूक जाना ये बता रहा था कि  ये खेल के महायुध्द में बदल जाने का दबाव है। जो खिलाड़ियों को खुलकर खेलने नहीं दिेता। करो और मरो की तरह खेली दोनों टीमें। इंडिया मैच जीत भी गया। मीडिया की मोहाली का मैदान नहीं महासंग्राम हमने जीत लिया। लेकिन जरा सोचिये जरा खेल तो हम फिर भी हार ही गये। 

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