Sunday, June 28, 2015

श्री श्री.., हम सब सरकारी स्कूल के हैं...


प्राइवेट स्कूल बेहतर या सरकारी पाठशाला। लंबे समय से चल रही इस बहस में बीसियों बार प्राइवेट स्कूल जीतते आए हैं। लेकिन ये पहली बार है जब सरकारी स्कूलों में पढी पौध जो यकीनन अब पेड़ बन चुकी है,खुलकर सरकारी स्कूलों के हक में सामने आ गई है। बावजूद इसके कि इस पीढी के अपने बच्चे श्री श्री रविशंकर का तमगा मिलने के काफी पहले से, मंहगे प्राइवेट स्कूलों में पढ रहे हैं। ये सबकुछ श्री श्री रविशंकर का कमाल है। ये लोगों को जीने की कला सिखाने वाले संत के उस बयान का असर है जिसमें उन्होने सरकारी स्कूलों को, नक्सली और हिंसक बच्चों की खान बता दिया और यहां तक कहा कि देश में सारे सरकारी स्कूल बंद कर देने चाहिए। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने तो खैर खुद ही बता दिया कि वो सरकारी स्कूल में पढे हैं। लेकिन मौजूदा पीढी को छोड़कर, सिब्बल ही नहीं, उनके बाद और उनके पहले की कई पीढियां हैं,सरकारी स्कूल की टाटपट्टियों पर ही जिन्होने जीवन का ककहरा सीखा और आज ऊंचे ओहदों पर बैठकर अपने समाज और देश का नाम रोशन कर रही हैं। ये उस वक्त की बात है जब श्री श्री रविशंकर के आर्ट आॅफ लिविंग की शुरुवात भी नहीं हुई होगी। आर्ट आॅफ लिविंग को शुरु हुए अभी कुल जमा तीस साल हुए हैं। लेकिन हिंदुस्तान में सरकारी स्कूल तो आजादी के पहले से हैं। इन्ही सरकारी स्कूलों में महादेवी वर्मा पढीं। इन्ही सरकारी स्कूलों से लालबहादुर शास्त्री ने तालीम ली और इन्ही सरकारी स्कूलों में रविशंकर की तरह ही लोगों को आध्यात्म से जीने का कला सिखाने वाले रजनीश ने जीवन का पहला सबक सीखा। नक्सलियों का तो खैर पता नहीं, लेकिन सरकारी स्कूल से निकले जाने कितने लोग हैं। जो कहीं राजनीति में है तो सरकार चला रहे है। कहीं फौज में हैं तो देश का मान बढा रहे है। कहीं डॉक्टर बनकर सरकारी अस्पतालों में लोगों का इलाज कर रहे है। चलिए रविशंकर जी के कहे मुताबिक उस पीढी को भी छोड़ देते हैं, हांलाकि खुद उन्होने भी बाद में अपने बयान से पलटते हुए ये मंजूर किया कि सरकारी स्कूलों से कई ज्ञानवान लोग निकले हैं। अब हम आज की बात पर आते हैं। रविशंकर की दलील है कि सरकारी स्कूलों में आदर्शो की कमी हैं, यहां से निकले बच्चे हिंसक और नक्सली हो जाते हैं, इसलिए इन स्कूलों को बंद कर देना चाहिए। पर रविशंकर जी, सरकारी स्कूलों की वजह से देश में नक्सलवाद नहीं बढ रहा। नक्सलवाद की सबसे बढी वजह ही तो अशिक्षा है। और सरकारी स्कूलों की दम पर ही नक्सली इलाकों की अशिक्षा से निपटा जा सकता है, और निपटा जा रही है। अब प्राइवेट संस्थाएं तो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, झारखंड और उड़ीसा के नक्सलप्रभावित सुदूर इलाकों में स्कूल खोलने से रहीं। यहां तो सिर्फ सरकारी स्कूल ही खुल सकते हैं ना। रविशंकर जी, आपकी जानकारी में होना चाहिए कि देश में साक्षरता की दर इन्ही सरकारी स्कूलों के भरोसे बढ रही है। चंद हजार रुपयों की पगार में, मीलों पैदल चलकर दूरदराज के गांव में बच्चों को तालीम देने वाले संविदा शिक्षक के पढाए बच्चों में से अल्बर्ट आइंस्टीन बनने की उम्मीद कोई नहीं करता। लेकिन इतनी तसल्ली रखिए जो शिक्षक खुद अपने पेट और पगार की लड़ाई के लिए धरने प्रदर्शन, भूखहड़ताल जैसे अहिंसक आंदोलन करता है, वो अपने पढाए बच्चों को कतई हिंसा के रास्ते पर नहीं जाने दे सकता। दुनिया को आर्ट आॅफ लिविंग सिखाने वाले आप जैसे संत भी टीचर ही हैंं। आपकी जुबान भरोसे की जुबान होती है, इसलिए आगे इस जुबान का भरोसा कायम रखिए। ऐसा कहिए जो मंजूर करने काबिल हो। .आधे से ज्यादा देश आपके बयान के बाद कह रहा है.., हम सब भी सरकारी स्कूल में ही पढे हैं...श्री श्री रविशंकर।

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