Tuesday, June 30, 2015

तो क्या भूख मिटा देगा मोबाइल




ऐसे वक्त में जब पूरा देश सिर्फ मंहगाई का मारा है। एक ऐसे वक्त में जब देश की आधी से अधिक आबादी की पूरे दिन की कमाई में केवल दो जून की रोटी की जुगाड़ हो पाती है।ऐसे वक्त में गरीब सरकार से क्या आस लगा सकता है भला।  सिवाए इसके कि अबकि जब प्रधानमंत्री पंद्रह अगस्त की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करने आएं। तो उनके भाषण में मंहगाई से राहत की बात हो। रोटी का भरोसा हो। इस बात की गारंटी दे दे सरकार की इस देश के गरीब को और कुछ मिले ना मिले रोटी की गारंटी जरुर मिल जाएगी। लेकिन सूत्रों से छन कर आ रही खबरें, कहती हैं कि प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को गरीब की भूख से ज्यादा उसके मोबाइल हो जाने के फिक्र है। यकीन मानिए, मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी की रहनुमाई में गरीब का पेट भरे ना भरे, वो मोबाइल के साथ हाइटेक यकीनन हो जाएगा। इस बात की गारंटी सरकार ने ले ली है।  सरकार ने देश के हर गरीब को मोबाइलधारी बनाने, सात हजार करोड़ की योजना तैयार की है। इस योजना में बीपीएल परिवारों को एक मोबाइल फोन देने का फैसला किया गया है। योजना को नाम दिया गया है हर हाथ में फोन। कांग्रेस सरकार के इस हर हाथ में फोन के चुनावी नारे से कांग्रेस की बदलती सोच का भी पता चलता है। इंदिरा गांधी से सोनिया गांधी तक आते आते कांग्रेस के बदलाव महसूस होते हैं। यही कांग्रेस तो थी जब इंदिरा गांधी ने हर हाथ को रोजी, रोटी और मकान का नारा दिया था, और पूरे देश में कांग्रेस की हवा बह निकली थी। अब भी कांग्रेस तो वही है, लेकिन ये सोनिया गांधी की कांग्रेस है। जो मानती है कि गरीबी रोजी रोटी से नहीं मोबाइल से मिटेगी। मोबाइल हाथ में लिए देश का गरीब कम से कम तस्वीरों में तो गरीब दिखाई नहीं देगा। ये सरकार का गरीबी मिटाने का अपना मोबाइल फार्मूला है। तो अब मानकर चलिए कि आने वाले वक्त में इस मुल्क में हर गरीब के हाथ में रोटी हो ना हो, मोबाइल तो हर हाथ में होगा। इतना ही नहीं,पंद्रह अगस्त की इस मोबाइल सौगात के साथ, गरीबों पर मेहरबान सरकार दो सौ मिनिट का फ्री लोकल टॉकटाइम भी देगी। सरकार ने किस सोच के साथ ये फैसला लिया है,समझ से परे है। ऐसा तो नहीं कि बंद एयरकंडीशंड कमरों में, इस तरह की योजनाओं को अंजाम देने वाले नेता और अफसर इस देश के गरीब और गरीबी से वाकिफ ही ना हों। बताइये तो जरा गरीबी रेखा के नीचे गुजर करने वाला, रामदीन जिसका पूरा दिन इस आस में गुजर जाता है कि शाम तक की हम्माली के बाद इतने पैसे हो जाएं कि आधा किलो आटा खरीद सके। मोबाइल भला उसके किस काम का है। दिन रात मजबूरी और लाचारी की जिंदगी गुजर करने वाला इस देश के आम आदमी को अपनी खबर नहीं है, तो वो सरकार से तोहफे में मिले मोबाइल से किसकी खैर खबर लेगा। बताया जाता है कि हर हाथ को मोबाइल देने की इस योजना पर सरकार प्रतिमाह सौ रुपए खर्च करेगी। सौ रुपए से कुछ ज्यादा, इस देश में बूढे लाचार लोगों को वृध्दावस्था पेंशन मिलती है। अब सरकार को कौन बताए। प्रधानमंत्री जी को कौन समझाए कि मोबाइल पर बतिया लेने से गरीब की भूख का अहसास खत्म नहीं हो जाएगा। सरकार, पेट तो रोटी मांगता है। मोबाइल से अपनी तसल्ली के लिए गरीब की तस्वीर बदल सकती है। तकदीर बदलिए, सरकार।

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