Sunday, June 28, 2015

बख्श दो नर्मदा को...



चौथे दर्जे में सहायक वाचन की किताब में नर्मदा एक पाठ हुआ करती थी।  फिर अमृतलाल वेगढ ने, एक परक्कमावासी की नजर से नर्मदा का भूगोल और इतिहास दिखाया । तब जाना था कि नर्मदा , सिर्फ एक नदी नहीं। इस प्रदेश की आस्था और विश्वास है। मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है नर्मदा। लेकिन वही नर्मदा, इन दिनों बिल्कुल नई शिनाख्त के साथ लोगों की जुबान पर चढी है। नर्मदा सियासत की वजह बनी है। शुरुवात कहां से हुई है, और एक नदी पर चल पड़ी ये राजनीति खत्म कहां होगी। इस पर फिलहाल कोई सवाल नहीं करते हैं। फिलहाल तो सिर्फ एक नदी पर हो रही राजनीति की तस्वीर देखते हैं। शुरुवात उस पाले से,सरकार को आइना दिखाना जिसकी ड्युटी  है। कांग्रेस के सांसद सज्जन सिंह वर्मा के जिस बयान पर बवाल मचा, यूं देखिए तो उसमें बवाल जैसा कुछ था नहीं, सिर्फ समझ का फेर था। भाजपा, नर्मदा के साथ हो रही जोरजर्बदस्ती के जिस बयान को लेकर आगबबूला हो गई। कहीं पार्टी ने खुद भी नर्मदा के इन हालातों को मंजूर किया था।  खुद को पाक साफ बताने के लिए पार्टी ने बस इतना जोड़ दिया कि ऐसा तो पिछली सरकार से होता आया है। जो पहले हो रहा था वही अब भी हो रहा है। कांग्रेस सांसद का शब्द भले मां नर्मदा से जुड़ी भावनाओं को ठेस पहुचाने वाला हो सकता है। लेकिन भाव के बजाए,भावार्थ में जाएं तो महसूस करेंगे कि सज्जन सिंह वर्मा ने गलत कुछ नहीं कहा। भाजपा ने गेंद को आधे में ही लपकने की कोशिश कर ली। हांलाकि दांव उल्टा ही पड़ा। नर्मदा में रेत के अवैध उत्खनन से जुड़े सवाल और जोर शोर के साथ भाजपा के सामने आ गए। फिलहाल पार्टी से लेकर सरकार तक जिन सवालों के जवाब भाजपा में किसी के पास नहीं है। कांग्रेस नर्मदा के हालात दिखा रही है और भाजपा नदी के मान पर हुए हमले का आघात लिए बैठी है।  लेकिन असल में,देखिए तो चिंता कहीं नहीं है। होना ये चाहिए था कि सरकार खुद सख्ती कांग्रेस के आरोपों से पहले लगातार खंगाली जा रही नर्मदा की अवैध खुदाई पर रोक लगाती, और ये यकीन दिलाती कि अस्मिता के साथ भाजपा को नर्मदा के अस्तित्व की भी चिंता है।  ऐसा नहीं है कि सियासी जुबानों पर नर्मदा का जिक्र पहली बार आया है। लेकिन अब तक जब भी सुना था, नेताओं की जुबान पर नर्मदा की फिक्र ही सुनाई देती थी। नर्मदा परिक्रमा करने वाले प्रहलाद पटेल बानगी हैं तो अनिल दवे जैसे राजनेता भी हैं, नर्मदा के किनारों ने जिनकी राजनीति की दिशा बदल दी। इन नेताओं ने कभी नर्मदा पर सियासत नहीं की। अपनी सियासत के सहारे नर्मदा के बिगड़ते हालातों को बदलने की कोशिश जरुर की। लेकिन जैसा कि होता है सार्थक काम सुनाई नहीं देते, इसलिए खामोशी से नर्मदा के मान के साथ उसके अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ते रहे। इन नेताओं की कोशिशों का भी कहीं हो हल्ला नहीं हुआ। लेकिन नदी पर सियासत करने वाले नेता तो चंद बयानों में ही सुर्खियों में आ गए हैं।  कहते हैं, गंगा में डूबकी लगाने से जो पाप धुलते हैं, नर्मदा के दर्शन मात्र से वो पाप खत्म हो जाते हैं। नर्मदा तीरे  बदलती संस्कृतियों की तरह, हम और आप हमेशा बदलते रहे। लेकिन नर्मदा ने ना कभी अपना गोत्र बदला है ना स्वभाव। वो तो अब भी अपने किनारों पर खड़े गुनहगारों को माफ कर देती है। उनके पाप धो देती है। नर्मदा के लिए नर्मदा का ही वास्ता। बख्श दो इस नदी को। नर्मदा पर राजनीति मत करो। तुम्हे देने नर्मदा के पास वोट बैंक नहीं है। 

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