मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेशअध्यक्ष ने देश की बढती मंहगाई से तंग आकर राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की गुहार लगाई है। प्रभात झा से पहले मुंबई के एक अस्पताल में पिछले सैंतीस साल से भर्ती साठ बरस की बलात्कार की शिकार एक नर्स अरुणा रामचंद्रन ने इच्छा मृत्यु की मंशा जताई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया । अरुणा के पहले राजस्थान के पिलानी की रहने वाली सीमा सूद ने प्रभात झा की तरह राष्ट्रपति को खत लिखकर इच्छा मृत्यु चाही थी,गोल्ड मैडलिस्ट इंजीनियर सीमा आर्थराइटिस से पीड़ित है। उसका पूरा शरीर कंकाल हो चुका है और पिछले तेरह सालों से एक ही कमरे में कैद है। सीमा सजा बनचुकी इस जिंदगी से निजात चाहती है। इच्छा मृत्य के लिए एक और खत बिहार की एक मां ने भी लिखा था वो अपने दो बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु चाहती थी ,उसके दोनों बेटे एक ऐसी लाइलाज बीमारी की शिकार है जिसमें तेरह और और पंद्रह बरस की उम्र में वो कंकाल नजर आते हैं।लेकिन इनमें से किसी भी मामले में अब तक किसी को भी इच्छा मृत्यु की इजाजत नहीं मिली। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा की तरह इच्छा से मृत्यु की याचना कर रहे इन दीगर मामलों का जिक्र इसलिए ज़रुरी था कि आप अंदाजा लगा सकें कि इच्छा मृत्यु की याचना के हालात क्या होते हैं। जिक्र इसलिए भी जरुरी था कि एक नेता की नौटंकी और आम आदमी के दर्द का अंतर समझाया जा सके। प्रभात झा ने देश में बढती मंहगाई के बदतर हालात में मर मर के जी रहे आम आदमी की खातिर राष्ट्रपति से मौत मांगी है। लेकिन प्रभात झा ये खत लिखते वक्त शायद भूल गए कि वो एक नेता है। नेता मरने के लिए नही होते। मरने के लिए आम जनता होती है। पाले से हारा प्रदेश का किसान राष्ट्रपति से मंजूरी लिए बगैर मर जाता है। नेता को मरना नहीं जीना आना चाहिए। उसका जीवन भी तो जनता के लिए ही होता है ना। प्रभात झा के खत में लिखी पंक्ति के मुताबिक अगर प्रभात झा जीएंगे नहीं, आवाम की परवाह नहीं करेंगे तो सौ करोड़ भारतीयों की चिंता फिर और कौन करेगा। तो मरने का ख्याल छोड़ दीजिएप्रभात जी। यूं भी जब जीते जी मर रहे लोगों को राष्ट्रपति इच्छा मृत्यु की मंजूरी नहीं दे रहे। कई लोगों की जान लेने वाले अफजल गुरु और कसाब को फांसी नहीं मिल पा रही तो ऐसे में प्रभात जी के इच्छा मृत्यु एपीसोड को कोई मौका मिलने से रहा। प्रभात झा भी ये भली तरह जानते हैं। वरना इच्छा मृत्यु का खत राष्ट्रपति भवन के बाद सीरे मीडिया हाउसेस में पहुंचाने के बजाए आम जनता के हालात से दुखी होकर नेताजी कोई कदम उठा ना लेते। कुछ नया करने के फेर में लोकप्रियता के लिए उन्होने ये दांव खेला था जो उल्टा पड़ गया हैं। दांव जरुर उल्टा पड़ गया लेकिन आम आदमी के लिए जान देने को उतारु नेता से सवाल करने का मौका तो आम आदमी को फिर भी मिल ही गया। इस प्रदेश का आम आदमी प्रभात जी से मरने की नहीं जीते रहने की गुहार लगाता है। उस आम आदमी की दरख्वास्त है कि प्रभात झा सौ साल जीएं। अपने लिए ना सही अपनी जनता की खातिर जीएं और जिस पार्टी के वो प्रदेशाध्यक्ष हैं उस पार्टी की सरकार को इस बात के लिए तैयार करें कि अपने प्रदेश में उस वैट की दरें कम कर दे, जो देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले मध्यप्रदेश में कहीं ज्यादा है। प्रभात जी, नेता तो लड़ता है। जूझता है ,अपनी जनता के लिए। इच्छा मृत्यु का खत लिखकर अपने प्रदेश के आम आदमी की गरीबी का इस तरह मजाक नहीं उड़ाता। खैर जब जागे तब सवेरा है अब भी देर नहीं हुई। राष्ट्रपति के बाद मध्यप्रदेश में वैट करने की दमदार मांग के साथ अब एक खत अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को लिख डालिए, प्रभात जी। इससे पहले कि मंहगाई की मारी मध्यप्रदेश की जनता के लिए राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु मांंगने की नौबत आ जाए।
Sunday, June 28, 2015
प्रभात जी की मृत्यु इच्छा
मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेशअध्यक्ष ने देश की बढती मंहगाई से तंग आकर राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की गुहार लगाई है। प्रभात झा से पहले मुंबई के एक अस्पताल में पिछले सैंतीस साल से भर्ती साठ बरस की बलात्कार की शिकार एक नर्स अरुणा रामचंद्रन ने इच्छा मृत्यु की मंशा जताई थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया । अरुणा के पहले राजस्थान के पिलानी की रहने वाली सीमा सूद ने प्रभात झा की तरह राष्ट्रपति को खत लिखकर इच्छा मृत्यु चाही थी,गोल्ड मैडलिस्ट इंजीनियर सीमा आर्थराइटिस से पीड़ित है। उसका पूरा शरीर कंकाल हो चुका है और पिछले तेरह सालों से एक ही कमरे में कैद है। सीमा सजा बनचुकी इस जिंदगी से निजात चाहती है। इच्छा मृत्य के लिए एक और खत बिहार की एक मां ने भी लिखा था वो अपने दो बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु चाहती थी ,उसके दोनों बेटे एक ऐसी लाइलाज बीमारी की शिकार है जिसमें तेरह और और पंद्रह बरस की उम्र में वो कंकाल नजर आते हैं।लेकिन इनमें से किसी भी मामले में अब तक किसी को भी इच्छा मृत्यु की इजाजत नहीं मिली। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा की तरह इच्छा से मृत्यु की याचना कर रहे इन दीगर मामलों का जिक्र इसलिए ज़रुरी था कि आप अंदाजा लगा सकें कि इच्छा मृत्यु की याचना के हालात क्या होते हैं। जिक्र इसलिए भी जरुरी था कि एक नेता की नौटंकी और आम आदमी के दर्द का अंतर समझाया जा सके। प्रभात झा ने देश में बढती मंहगाई के बदतर हालात में मर मर के जी रहे आम आदमी की खातिर राष्ट्रपति से मौत मांगी है। लेकिन प्रभात झा ये खत लिखते वक्त शायद भूल गए कि वो एक नेता है। नेता मरने के लिए नही होते। मरने के लिए आम जनता होती है। पाले से हारा प्रदेश का किसान राष्ट्रपति से मंजूरी लिए बगैर मर जाता है। नेता को मरना नहीं जीना आना चाहिए। उसका जीवन भी तो जनता के लिए ही होता है ना। प्रभात झा के खत में लिखी पंक्ति के मुताबिक अगर प्रभात झा जीएंगे नहीं, आवाम की परवाह नहीं करेंगे तो सौ करोड़ भारतीयों की चिंता फिर और कौन करेगा। तो मरने का ख्याल छोड़ दीजिएप्रभात जी। यूं भी जब जीते जी मर रहे लोगों को राष्ट्रपति इच्छा मृत्यु की मंजूरी नहीं दे रहे। कई लोगों की जान लेने वाले अफजल गुरु और कसाब को फांसी नहीं मिल पा रही तो ऐसे में प्रभात जी के इच्छा मृत्यु एपीसोड को कोई मौका मिलने से रहा। प्रभात झा भी ये भली तरह जानते हैं। वरना इच्छा मृत्यु का खत राष्ट्रपति भवन के बाद सीरे मीडिया हाउसेस में पहुंचाने के बजाए आम जनता के हालात से दुखी होकर नेताजी कोई कदम उठा ना लेते। कुछ नया करने के फेर में लोकप्रियता के लिए उन्होने ये दांव खेला था जो उल्टा पड़ गया हैं। दांव जरुर उल्टा पड़ गया लेकिन आम आदमी के लिए जान देने को उतारु नेता से सवाल करने का मौका तो आम आदमी को फिर भी मिल ही गया। इस प्रदेश का आम आदमी प्रभात जी से मरने की नहीं जीते रहने की गुहार लगाता है। उस आम आदमी की दरख्वास्त है कि प्रभात झा सौ साल जीएं। अपने लिए ना सही अपनी जनता की खातिर जीएं और जिस पार्टी के वो प्रदेशाध्यक्ष हैं उस पार्टी की सरकार को इस बात के लिए तैयार करें कि अपने प्रदेश में उस वैट की दरें कम कर दे, जो देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले मध्यप्रदेश में कहीं ज्यादा है। प्रभात जी, नेता तो लड़ता है। जूझता है ,अपनी जनता के लिए। इच्छा मृत्यु का खत लिखकर अपने प्रदेश के आम आदमी की गरीबी का इस तरह मजाक नहीं उड़ाता। खैर जब जागे तब सवेरा है अब भी देर नहीं हुई। राष्ट्रपति के बाद मध्यप्रदेश में वैट करने की दमदार मांग के साथ अब एक खत अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को लिख डालिए, प्रभात जी। इससे पहले कि मंहगाई की मारी मध्यप्रदेश की जनता के लिए राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु मांंगने की नौबत आ जाए।
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