Saturday, April 28, 2018

उन मौसमों की याद में....
कश्मीर सिर्फ समाचार ही रहा कई सालों तक.., दूरदर्शन पर समाचार के आखिर मे मौसम के समाचार सुनाये जाते। जिसमे भारी बर्फ़बारी सिर्फ कश्मीर मे ही तो होती थी. फिर पहली बार कश्मीर दिखाई भी दिया...।
सरकारी मकानो वाले मेरे मोहल्ले मे जाड़े की आमद उनके साथ ही होती . हर बरस ठिठुरते दिनों का बंदोबस्त लिए...., अपनी पोटलियों मे रेशा रेशा कश्मीर लिए...., वो मेरे शहर आते थे पश्मीना, फिरन ,पोंचू , जाड़े के दिनों मे मोहल्ले की हर लड़की कश्मीर की कली बन जाने की ज़िद बांध लेती।
ना नाम मालूम था तुम्हारा, ना पता. हमारे लिए तुम सिर्फ कश्मीरी थे, वैसे ही जैसे हम भोपाली...
वो नुक्कड़ से तीसरी लाइन को चौथे मकान तक हर साल जाड़ों मे बेहिचक आते रहे तुम . और
गुनगुनी धुप मे सुस्ताते बतियाते हम भी, तुम दिखाई ना देते तो एक बार तो ज़िक्र कर ही लेते,
सर्दियां देरी से आई हैं या झेलम एक्सप्रेस लेट है इस बार,
साल दर साल चलते रहे ये सिलसिले। और तुम हमारे लिए बदलते मौसम के क़ासिद बने रहे.
तुम तो इस बार भी पोटलियों मे वादियों की वर्दियां लिए गुज़रे होगे मेरी गली से. घर के आगे घंटी भी बजाई होगी देर तक.
पश्मीने मे लिपटा कश्मीर फिर लाये होगे इस बार भी.
दुख... केवल सब्र की ज़मीन नहीं... दुख जीवन की उर्वरा है... अनंत यात्रा के पड़ाव का साक्षात .पर दुख के बाद भी जीवन छल से भरा रहे ..... दुख के बाद भी दुनियादारी के सवाल हों... ..तो ये दुख आत्मा की नमी नहीं... व्यर्थ का विलाप है.. ...कोशिश हो कि दुख... सबक बनें..कि दुख की कोख जब अवसाद को जन्म दे रही हो... तब भी..टूटी फूटी सही जीवन में आस्था बनी रहे....
कि जब तलक सांस है भूख है प्यास है....
....वो बेवजह दूसरी जिंदगियों में आई मुश्किलों की ढेर सारी बातें करने लगी है....सिर्फ इसलिए कि खुद अुपनी जिंदगी से जूझने की हिम्मत जुटा सके, खुद अपनी, पीड़ा का पैरामीटर कुछ कम कर सके.....
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सड़क के मोड़ को दुख का कोना बना लिया है उसने...घर के मोड़ पर गाड़ी रोकता है, और चीख कर रो लेता है....ताकि सुबह से शाम तक घर दफ्तर में खुद को सामान्य दिखा सके....
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उस दफ्तर के लोग चुटकुले ज्यादा शेयर करते हैं अब... जानबूझकर करते हैं ये साफ दिखाई भी देता है......वो बहुत हंसती नहीं अब ....पर दोस्त कमबख्त कोशिश भी नहीं छोड़ते....
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वो पूरे दिन अपनी जान से दूर रहने के बाद, सिर्फ इसलिए अपने बच्चे से खुद को दूर कर लेती है....कि एक मां की सूनी आंखों में कहकहे लौटा देने का यही एक रास्ता है उसके पास......
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इंसानियत....किसी किताब में दर्ज नहीं होती ....
जीने का कोई तय सलीका नहीं होता.....
रोज ब रोज खुद सिखाती जाती है जिंदगी ......कि कैसे जीया जाता है......
खत....कि खता हुई थी...
उसे लिखना....जिसने चीख कर कहे गए लफ्ज़ भी हर बार अनसुने कर दिए थे....और ये जानते हुए लिखना कि ये खत भी अनदेखा रह जाना है...
पर सुना था किसी से कि लिखना मन की उदासियों में मुस्कान टांक देना है
सो लिख दिया ....खत का कायदा होता है ना कि पहली लाईन में लिखा जाता है तुम कैसे हो...तुम जैसे भी हो...मेरे हो... जैसा कोई फिल्मी डॉयलॉग नहीं कहना मुझे...नहीं कहना कि तुम मेरे थे ही कहां...
और सच कितनी तसल्ली है इस सच्चाई को मंजूर कर लेने में कि वो मोहब्बत थी ही नहीं कि ख्वाब की दुनिया हमेशा कांच की ही होती है ...किसी की मोहब्बत के भरम में जीना....और फिर उस भरम को अपने हाथों तोड़ देना....हिम्मत का काम होता है...
माऊंट एवरेस्ट पर बिना सांसों के चढने जितनी हिम्मत....
कि बेअसर रहना उस निगाह से जिसे देखने की हसरत में आप जाने कितनी दोपहरें शाम कर चुके हों....बेताल्लुक रहना, उस छुअन से...जो चाय का कप संभालते हुए ...बेखुदी में हथेलियों पर दर्ज रह गई थी..बेफिक्र रहना उस ख्याल से ...कि जाने आज फेसबुक की तस्वीर पर उसका दिल चस्पा होगा भी या नहींआंसूओं की बारिश...दिल के दर्द धो देती है...कई बार सुना है
कि इसी रास्ते से मन का आसमान साफ होता जाता है....
तो खुल गया है आसमान...धूप निकल आई है.....
कि तुम्हारे आने और जाने के बीच सदियों के फासले भी मेरी परवाह का हिस्सा नहीं अब....कि किसी और मोहब्बत में मुब्तिला प्यार करने वाले शख्स को देखकर ये अफसोस भी नहीं कि तुम ऐसे क्यूं नहीं हुए....
छोड़ देना जितना आसान...उतना मुश्किल भी तो होता है.....
पर मुश्किलों से जिंदगी आसान होती है....तो ये जो खत के आखिर में खाली स्पेस है ना.....जिंदगी में भी ऐसा ही खाली स्पेस छोड़ दिया है.....
कभी भर पाई तो उसे आसमानी रंग से भरूंगी......
तुम अब ख्याल में नहीं हो....
यकीन मानों फार्मली कह रही हूं....... अपना ख्याल रखना.....
( खत लिखिए....जरुर लिखिए कि लाल डिब्बे की उदासी टूटे)
....
आसान नहीं होता...
सिसकियों से टूट रही खामोशी में 
हौसले का मरहम रख पाना...

जब सात्वंना देते हाथ 
संभालते कंधे 
सब रीत चले हों 
बीत चले हों...
तब आंसूओं को समेटकर 
झूठी मुस्कान चेहरे पर लाना 
आसान नहीं होता...

आसान नहीं होता 
फिर मंदिर में सांझ का दीपक लगाना 
भगवान से कह पाना, 
तुम्हारी यही मर्जी थी शायद

आसान नहीं होता...
उसी दुनिया में जीना...खड़े होकर 
चल पाना...जहां रस्ते, गली, चौराहे पर 
तुम्हारी याद ठहरी है....

आसान नहीं होता 
तुम्हारी तस्वीर को
खुद अपनी आंखों से
छिपा जाना, 
कि तुम्हे तस्वीर बनते नहीं देखना था हमें.....

आसान नहीं होता...
दुखों का पहाड़ चढकर 
फिर उसी दुनिया में लौट पाना ...
जहां, जीवन नश्वर है...
इस सबसे बड़े सच से साक्षात के बाद भी
छल अपने पैर पसार ही लेता है.....
कितने सवाल होते हैं, जिनके जवाब जिंदगी के पास भी नहीं होते. मैं चाहती हूं कि मेरी जिंदगी की रुठी छूटी ख्वाहिशों का सिक्वल ना बने तुम्हारी जिंदगी। मैं चाहती हूं कि मेरे हादसे तुम्हारा तजुर्बा ना बनने पाएं. मैं चाहती हूं कि अपनी वसीयत में तुम्हारे नाम खिलते गुलाब, चहकती चिड़ियाएं ऊंघते देवदार लिख जाऊं कि ये दिल नहीं तोड़ेंगे कभी। 
और तुम्हारे वो मासूम सवाल..कि जिनके हल गूगल के पास भी नहीं है. ये जिंदगी के सवाल, जिनके जवाब मुझे भी नहीं मिले आज तक वो तुम्हारे साथ छोड़े जाऊंगी कि तुम ढूंढ लोगे जवाब ..उम्मीद है मुझे.

बीतते बेदर्द दिसम्बर का एक ख्याल है बस... वक्त गुज़रा है हम नहीं गुज़रे...
  1. कुछ लम्हे अपने नाम के हो 
  2. कोई इत्मीनान की शाम के हो
  3. लिखूं किताब मन की अबकि 
  4. नीदों को मिले मीठी थपकी
  5. मैं दूर देस को जाऊं अब 
  6. मैं दिल के साज़ पर गाऊं अब
  7. जो संघर्षों में रुठ गए 
  8. जो हाथ छुड़ाकर छूट गए
  9. उस बीती को मैं बिसार भी दूं 
  10. जो साथ खड़े.,उनको देखूं 
  11. जो साथ चले उनको जानू
  12. मुझे वादी में सुस्ताना है 
  13. सागर पर दौड़ लगाना है....
  14. बस इतनी सी ख्वाहिश मेरी,
  15. दुनिया से जब रुखसत पाऊं 
  16. इतनी मोहलत बस मिल जाए .....
  17. शिफाली