उमा भारती की भाजपा में वापिसी कब होगी। मध्यप्रदेश की मीडिया भाजपा नेताओं से पिछले कई सालों सो इस सवाल का जवाब मांगती रही है। जवाब मिला,लेकिन पूरे छै साल बाद। इस बीच कई बार मौसम की तरह साध्वी की वापिसी के सियासी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे। साध्वी की वापिसी के बादल छाए फिर छंट भी गए। लेकिन आखिरकार मौसम बदला। साध्वी के राजनीतिक भविष्य का आसमान साफ हो गया। और अपनी राह पकड़ चुकी उमा भारती को छै साल भटकने के बाद ही सही, राह मिल गई और राहत भी। एक नेता को घर का पता मिल गया। पुरानी पहचान मिल गई। राजनीति के हाजिरी रजिस्टर में अपने नाम के आगे लिखने ठीक ठीक काम और मुकाम मिल गया। यूं उमा भारती को पहचान का संकट कभी ना रहा हो। लेकिन पार्टी से अलग हो जाने का असर उमा ने देखा है। राजनीति के बनते बिगड़ते नक्शे ही नहीं सियासत के सिंहासन तक पहुंची इस साध्वी ने सत्ता की खातिर चेहरे बदलते देखे हैंं। बीते छै साल उमा भारती के लिए सिर्फ इम्तेहान के साल नहीं थे। बहुत कुछ सीखने के छै साल थे। सबक लेने के छै साल थे। उमा भारती ने सबक लिया भी है। भाजपा में वापिसी की बाद उनके सधे बंधे बयानों में ये सबक दिखाई और सुनाई देता है। इन छै सालों में उमा भारती की बंद मुट्ठी खुल चुकी है। उमा भारती की लोकप्रियता उनकी संगठन क्षमता का सच सारे देश के ही नहीं खुद उनके भी सामने आ गया है। उमा भारती के शब्दों में जहाज से उड़ा पंछी छै साल बाद वापिस जहाज पर लौट आया है। पर इस पंछी के आने और जाने के दरमियान जहाज पर बहुत कुछ बदल चुका है। भाजपा की तस्वीर बदल चुकी है। और परिवार की इस नई तस्वीर में फिलहाल उमा भारती हैप्पी फैमिली के फ्रेम से बाहर है। वो फिलहाल परिवार से रूठ कर और छूट कर लौटे उस बेटे की तरह हैं। जिसे अपनाने में वक्त लगता है। उमा भारती की घर वापिसी यकीनन हो गई। लेकिन अब सवाल भरोसे का है। उमा भारती को भी पार्टी की भरोसेमंद बनना है। और पार्टी को उन पर भरोसा करना है। जो अभी कहीं दिखाई नहीं दे रहा। यही वजह रही कि उमा भारती के मामले में पार्टी ने भरपूर वक्त लिया । और वापिसी जिस अंदाज में हुई है वो ये बताती है कि साध्वी के मामले में अब भी पार्टी फूंक कर कदम रख रही है। संभल कर तो उमा को भी चलना होगा। उसी मिजाज के साथ जिसमें उन्होने अपने जहाज पर वापिसी की है। साध्वी की वापिसी की सुर्खियों के साथ मध्यप्रदेश का सवाल खुद ब खुद साथ आ जाता है। उमा भारती के उस मध्यप्रदेश का सवाल, जिसे वो अपना बच्चा कहती रही है। लेकिन जैसा खुद उमा भारती ने कहा वो बीते पांच सालों को भूल कर आई हैं। और यूं भी साध्वी के राजनीतिक भविष्य के लिए भी यही बेहतर है कि वो बीती को बिसार दें। साध्वी के लिए उस मध्यप्रदेश को बिसारना बेहतर है। जिसने उनके बगैर भी भाजपा को अपना भरोसा दिया। उमा भारती भी हकीकत से अनजान नहीं है। और किसी भरम में भी नहीं यही वजह है कि वो मध्यप्रदेश से सुरक्षित दूरी बनाए हुए हैं। इस लिहाज से ये आशांकाए बेमानी है कि साध्वी की वापसी से भाजपा के सबसे भरोसेमंद राज्य में कोई हलचल होगी। फिलहाल तो भाजपा और उसकी नेता के सामने उत्तर प्रदेश का इम्तेहान है। भाजपा का इम्तेहान और उमा भारती का इंट्रेस टेस्ट। याद कीजिए, अयोध्या और राम के सहारे ही साध्वी की सियासत परवान चढी थी। अब राम भरोसे पूरे उन्नीस साल बाद साध्वी अपनी दूसरी सियासी पारी की शुरुवात करने जा रही हैं। लेकिन अबकि फायर ब्रान्ड की नहीं, छै साल का सबक लेने के बाद ये संभलकर बोलने और चलने वाली साध्वी की पारी है।
Sunday, June 28, 2015
उमा की फिर घर वापिसी
उमा भारती की भाजपा में वापिसी कब होगी। मध्यप्रदेश की मीडिया भाजपा नेताओं से पिछले कई सालों सो इस सवाल का जवाब मांगती रही है। जवाब मिला,लेकिन पूरे छै साल बाद। इस बीच कई बार मौसम की तरह साध्वी की वापिसी के सियासी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे। साध्वी की वापिसी के बादल छाए फिर छंट भी गए। लेकिन आखिरकार मौसम बदला। साध्वी के राजनीतिक भविष्य का आसमान साफ हो गया। और अपनी राह पकड़ चुकी उमा भारती को छै साल भटकने के बाद ही सही, राह मिल गई और राहत भी। एक नेता को घर का पता मिल गया। पुरानी पहचान मिल गई। राजनीति के हाजिरी रजिस्टर में अपने नाम के आगे लिखने ठीक ठीक काम और मुकाम मिल गया। यूं उमा भारती को पहचान का संकट कभी ना रहा हो। लेकिन पार्टी से अलग हो जाने का असर उमा ने देखा है। राजनीति के बनते बिगड़ते नक्शे ही नहीं सियासत के सिंहासन तक पहुंची इस साध्वी ने सत्ता की खातिर चेहरे बदलते देखे हैंं। बीते छै साल उमा भारती के लिए सिर्फ इम्तेहान के साल नहीं थे। बहुत कुछ सीखने के छै साल थे। सबक लेने के छै साल थे। उमा भारती ने सबक लिया भी है। भाजपा में वापिसी की बाद उनके सधे बंधे बयानों में ये सबक दिखाई और सुनाई देता है। इन छै सालों में उमा भारती की बंद मुट्ठी खुल चुकी है। उमा भारती की लोकप्रियता उनकी संगठन क्षमता का सच सारे देश के ही नहीं खुद उनके भी सामने आ गया है। उमा भारती के शब्दों में जहाज से उड़ा पंछी छै साल बाद वापिस जहाज पर लौट आया है। पर इस पंछी के आने और जाने के दरमियान जहाज पर बहुत कुछ बदल चुका है। भाजपा की तस्वीर बदल चुकी है। और परिवार की इस नई तस्वीर में फिलहाल उमा भारती हैप्पी फैमिली के फ्रेम से बाहर है। वो फिलहाल परिवार से रूठ कर और छूट कर लौटे उस बेटे की तरह हैं। जिसे अपनाने में वक्त लगता है। उमा भारती की घर वापिसी यकीनन हो गई। लेकिन अब सवाल भरोसे का है। उमा भारती को भी पार्टी की भरोसेमंद बनना है। और पार्टी को उन पर भरोसा करना है। जो अभी कहीं दिखाई नहीं दे रहा। यही वजह रही कि उमा भारती के मामले में पार्टी ने भरपूर वक्त लिया । और वापिसी जिस अंदाज में हुई है वो ये बताती है कि साध्वी के मामले में अब भी पार्टी फूंक कर कदम रख रही है। संभल कर तो उमा को भी चलना होगा। उसी मिजाज के साथ जिसमें उन्होने अपने जहाज पर वापिसी की है। साध्वी की वापिसी की सुर्खियों के साथ मध्यप्रदेश का सवाल खुद ब खुद साथ आ जाता है। उमा भारती के उस मध्यप्रदेश का सवाल, जिसे वो अपना बच्चा कहती रही है। लेकिन जैसा खुद उमा भारती ने कहा वो बीते पांच सालों को भूल कर आई हैं। और यूं भी साध्वी के राजनीतिक भविष्य के लिए भी यही बेहतर है कि वो बीती को बिसार दें। साध्वी के लिए उस मध्यप्रदेश को बिसारना बेहतर है। जिसने उनके बगैर भी भाजपा को अपना भरोसा दिया। उमा भारती भी हकीकत से अनजान नहीं है। और किसी भरम में भी नहीं यही वजह है कि वो मध्यप्रदेश से सुरक्षित दूरी बनाए हुए हैं। इस लिहाज से ये आशांकाए बेमानी है कि साध्वी की वापसी से भाजपा के सबसे भरोसेमंद राज्य में कोई हलचल होगी। फिलहाल तो भाजपा और उसकी नेता के सामने उत्तर प्रदेश का इम्तेहान है। भाजपा का इम्तेहान और उमा भारती का इंट्रेस टेस्ट। याद कीजिए, अयोध्या और राम के सहारे ही साध्वी की सियासत परवान चढी थी। अब राम भरोसे पूरे उन्नीस साल बाद साध्वी अपनी दूसरी सियासी पारी की शुरुवात करने जा रही हैं। लेकिन अबकि फायर ब्रान्ड की नहीं, छै साल का सबक लेने के बाद ये संभलकर बोलने और चलने वाली साध्वी की पारी है।
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