Sunday, June 28, 2015

आइए, तबादलों का मौसम है..


सर्दी गर्मी बरसात की तरह ही अपने तय वक्त पर हर साल आता है सरकारी मौसम तबादलों का। शिक्षण सत्र खत्म हो जाने के बाद गर्मी की छुट्टियों के आस पास हर साल पंद्रह सत्रह दिन का तबादला सीजन। झुलसाती गर्मी के इन दिनों में पूरे एक पखवाड़े चलने वाले इस ट्रान्सफर सीजन में अधिकारियों कर्मचारियों की भी सांसें फूली रहती हैं। जाने कब कहां तबादले का फरमान आ जाये। जिनकी सेटिंग बैठ जाती है। वो अच्छी पोस्टिंग भी पा जाते है। लेकिन जो ये हुनर नहीं जानते। उन्हे तो ट्रान्सफर का घूंट पीना ही पड़ता है।   थोक बंद तबादलों का चलन जब से हुआ। तब ही से मंत्री और नेता से सेटिंग ट्यूनिंग की भी ईजाद हुई। और देखते ही देखते जाने कब हर साल की इस प्रशासनिक  प्रक्रिया  ने उद्योग की शक्ल ले ली। ट्रान्सफर पोस्टिंग अघोषित धंधा बन गया। नेताओँ के लिये अफसरों के लिये कमाई का वो मौसम जो साल में सिर्फ एक बार आता है। लेकिन पूरे साल का बंदोबस्त कर जाता है। ताज्जुब की बात ये है कि सबकुछ तय प्रक्रिया से ही होता है। लेकिन जैसा कि सिर्फ इस मुल्क में ही मुमकिन है। चाहे जितने नियम कायदे लगाये। सरकारी महकमों में भ्रष्ट्राचार की गुंजाइश फिर भी निकल ही आती है। पहले तबादले होते हंैं। यानि पहले डंडा। और फिर डंडे से  बचने,फँड यानि रुपयों का का फ ंडा। ताज्जुब की बात ये है कि सबकुछ तय फार्मेट में होता है। पहले तबादला किया जाता है इस उम्मीद के साथ कि जिसका तबादला किया जा रहा है। वो रुकवायेगा भी।  फिर मनचाही जगह अच्छी पोस्टिंग पाने पानी की तरह पैसा भी बहायेगा। तबादले के इस खेल में लिये दिये बगैर तो पत्ता भी नहीं हिलता। सरकारी फाइल का खिसकना तो फिर दूर की बात है। मान के चलिये जिसकी सरकार होती है उस पार्टी के अदने से कार्यकर्ता से लेकर मंत्री तक सब पूरे मनोयोग से इस काम में जुट जाते हैं। इस इंडस्ट्री में कार्यकर्ता से नेता तक सब बराबर के शेयर होल्डर होते हैं। शिवराज सरकार ने एलान किया है कि इस बार सात जून तक प्रदेश में थोकबंद तबादले हो सकेंगे। दो सौ संख्या वाले काडर में बीस फीसदी तक तबादले किए जा सकेंगे। लेकिन हमेशा की तरह तबादलों की चाबी इस बार भी सरकार के ही हाथ में रहेगी। अधिकारियों के नहीं जिले के प्रभारी मंत्रियों के हाथ में। तबादला सूची जिला स्तर पर जारी होगी। प्रभारी मंत्री की मंजूरी के बाद तीन दिन के भीतर ये तबादला सूची जारी हो जायेगी। सरकार लाख ईमानदारी के दावे करे। सरकार में भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगाने के कोरे बयान दे। लेकिन ट्रान्सफर पोस्टिंग के मामले में ये कहना लगभग नामुमकिन है कि इस मामले में पूरी ईमानदारी बरती जाती है,और पारदर्शिता से होते हैं सारे तबादले। और अब जबकि जिले के प्रभारी मंत्री के हाथ में है उसके जिले की चाबी। तो ये कैसे मुमकिन है कि वो अपनी मर्जी के लोगों के तबादले नहीं रुकवायेगा। आखिर वो मंत्री बना ही किसलिये है। कुछ कर्मचारी पार्टी के कार्यकताओँ के हिस्से के होंगे। कुछ नेताओं के । आखिर सरकारी कर्मचारी भी जानता है कि साल भर तक अगर किसी नेता या कार्यकर्ता से पटरी जमा ली। तो ट्रान्सफर के सीजन में सिर पर लटकने वाली तबादले की तलवार को अपने से अलग करना कोई मुश्किल नहीं। तबादले की फिक्र नहीं सेटिंग वाला कर्मचारी  मलाईदार पोस्टिंग का चिंतन करता है। असल में तबादले के इस उद्योग में बेइमानी जड़ों तक असर कर चुकी है। तो जाहिर है इसकी सफाई भी जड़ों से ही करनी होगी । दवाई भी वहीं डालनी पहले जरुरी होती है जहां जख्म गहरा हो। उ्द्योग बन चुकी इस प्रशासनिक प्रक्रिया को उसके मूल रुप में लाने के लिये पहले जरुरी है कि साल में एक बार आने वाले इस ट्रान्सफर सीजन पर रोक लगाई जाये।  जब जिस अधिकारी कर्मचारी को दंडित किया जाना हो। जिसे नवाजना हो। पूरे साल चले तबादलों की बयार।  वो भी पूरी पारदर्शिता के साथ हो। लेकिन ये सब आदर्श स्थिति के विचार हैं। सपनों की बातें हैं। हकीकत तो फिर भी यही है कि फिलहाल कमाई का मौसम पूरे शबाब पर है।  ट्रान्सफर के साथ कमाई वाली पोस्टिंग के रेट जिलों में अब तक तय हो चुके हैं। सरकारी ओहदे के हिसाब से अधिकारियों तक पहुंच चुकी है ट्रान्सफर रेट लिस्ट। और इस सिस्टम में फंस चुके कई हजार अन्ना हजारे खामोश हैं और कुछ नहीं कर पा रहे।

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