वक्त लगा लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस की छूटती सांसे लौट आईं। अर्से बाद सुस्त पड़ी कांग्रेस फिर सुर्खियों में है। पीसीसी दफ्तर में हुआ बदलाव , भोपाल की सड़कों से लेकर अखबार के पहले पन्ने तक हर जगह दिखाई दे रहा है। विज्ञापन के एक चर्चित जुमले की तरह कांग्रेस में पूरे घर के बदल डालने का वक्त आ गया है। और अपने तय वक्त यानि दस साल के कुछ पहले मध्यप्रदेश में पूरी ताकत के साथ लौट रहे दिग्विजय सिंह की मंशा भी यही है कि अबकि वो पूरे घर के बदल डालेंगे। कांतिलाल भूरिया को दी गई प्रदेश कांग्रेस की कमान और नेता प्रतिपक्ष केपद पर अजय सिंह की नियुक्ति के साथ उस बदलाव की शुरुआत भर हुई है। बयान बहना अभी बाकि है। लेकिन कांग्रेस की राजनीति की कुंडली बांचने ये दो नेता ही काफी हैं। सड़क से सदन तक बीजेपी से मोर्चा लेने के लिये कांग्रेस में तैनात दो चेहरे । जो एक ही नेता की सरपरस्ती से आते हैं। ऐसा कांग्रेस में मुद्दत बाद हुआ है। वरना इस पार्टी में तो ये रिवायत सी बन गई थी कि सदन का नेता अपनी ढपली बजाता। और संगठन का नेता अपना राग गाता । जमुना देवी के दौर से देखिये, सुभाष यादव,और फिर सुरेश पचौरी तक,सदन में कांग्रेस के नेता अलग । उनके संघर्ष अलग । रणनीति भी अलग। संगठन के नेता अलग और उनकी अलग ही रणनीति। यही वजह रही कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस हमेशा से बिखरी हुई नजर आई। जनता दोनों पार्टियों को करीब से देख रही है। एक तरफ बीजेपी है जहां कितना ही बड़ा हो नेता पार्टी के साये से बाहर नहीं जा सकता। और दूसरी तरफ कांग्रेस जहां पार्टी से नहीं नेता के कद से कहानी शुरु होती है। लेकिन इस बार इत्तेफाक से मध्यप्रदेश में पार्टी के साथ नेता भी एक ही है। अब तक कार्यकर्ता नेता की आस्था में पार्टी को भूलकर भटकते रहे हैं।लेकिन अब ये तय हो चुका है मध्यप्रदेश में कांग्रेस कथा राजा से शुरु होगी और राजा पर ही खत्म।। महीनों से कांग्रेस जिस फैसले का इंतजार कर रही थी। हफ्ते भर के भीतर प्रदेश कांग्रेस में हुए दो फैसलों ने प्रदेश कांग्रेस में छाया कुहासा तकरीबन साफ कर दिया। अभी तक कार्यकर्ता अपनी ही कांग्रेस की फिक्र में दुबले हो रहे थे। पर अब चिंता बीजेपी को करनी है। जो प्रदेश में लगभग खत्म हो चुकी कांग्रेस के हाल देख कर ये मान बैठी थी कि बगैर किसी मशक्कत के प्रदेश में बीजेपी अपनी हैट्रिक बना लेगी। तीन साल बीजेपी को कुछ नहीं करना पड़ा। पचौरी खुद कांग्रेस का जितना पलीता लगा सकते थे। लगा चुके। पैराशूट से आये पचौरी बोरिया बिस्तरा समेट कर दिल्ली लौट चुके हैं। कांग्रेस अब दिग्गी का दौर देखेगी । और यही बात बीजेपी के लिये परेशान करने वाली है। नेता एक है तो जाहिर है कि अब सदन से लेकर संगठन तक कांग्रेस के फैसले एक होंगे। संघर्ष एक होगा। कांग्रेस के सामने बस एक ही चुनौती है। ये चुनौती,अपनी ही पार्टी के उन पॉवर सेंटर्स से है। पचौरी के दौर में जिनका फ्यूज़ पूरी तरह उड़ा हुआ था। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिये कि लो प्रोफाइल कांतिलाल भूरिया प्रदेश में पार्टी के इन पॉवर सेंटर्स के आड़े नहीं आयेंगे। इम्तेहान के पहले की प्रिपेशन लीव सुरेश पचौरी ने समर वेकेशन्स की तरह गुजार दीं। अब इम्तेहान की तैयारी के दौरान ही कांग्रेस को इम्तेहान भी देना है। कुल जमा ढाई साल का वक्त बचा है। कहने को ये कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह का इम्तेहान है। लेकिन असल परीक्षा तो उस राजा की है। दस साल के राज के बाद जिसे इस सूबे ने वनवास दे दिया था। वनवास में रहते भी इस प्रदेश से दिग्गी राजा का मोह कभी नहीं छूटा। दिग्विजय सिंह के साथ मध्यप्रदेश में दस साल पहले का इतिहास फिर लौट रहा है। दस साल बाद इस सूबे की तस्वीर में फर्क बस इतना आया है कि कांग्रेस और बीजेपी के पाले बदल चुके है। बीजेपी के पास दो बार लगातार चैम्पियन होने का हौसला है। हार के बाद खड़ी हो रही कांग्रेस के पास नई कप्तानी के साथ काबिल कोच का आत्मविश्वास है। बीजेपी को समझना होगा कि अब कांग्रेस को सस्ते में लेना भारी भी पड़ सकता है। क्रिक्रेट की तरह ही होती है राजनीति भी आखिरी गेंद भी जीत हार का फैसला बदल सकती है।
Sunday, June 28, 2015
आईसीयू से बाहर आई कांग्रेस
वक्त लगा लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस की छूटती सांसे लौट आईं। अर्से बाद सुस्त पड़ी कांग्रेस फिर सुर्खियों में है। पीसीसी दफ्तर में हुआ बदलाव , भोपाल की सड़कों से लेकर अखबार के पहले पन्ने तक हर जगह दिखाई दे रहा है। विज्ञापन के एक चर्चित जुमले की तरह कांग्रेस में पूरे घर के बदल डालने का वक्त आ गया है। और अपने तय वक्त यानि दस साल के कुछ पहले मध्यप्रदेश में पूरी ताकत के साथ लौट रहे दिग्विजय सिंह की मंशा भी यही है कि अबकि वो पूरे घर के बदल डालेंगे। कांतिलाल भूरिया को दी गई प्रदेश कांग्रेस की कमान और नेता प्रतिपक्ष केपद पर अजय सिंह की नियुक्ति के साथ उस बदलाव की शुरुआत भर हुई है। बयान बहना अभी बाकि है। लेकिन कांग्रेस की राजनीति की कुंडली बांचने ये दो नेता ही काफी हैं। सड़क से सदन तक बीजेपी से मोर्चा लेने के लिये कांग्रेस में तैनात दो चेहरे । जो एक ही नेता की सरपरस्ती से आते हैं। ऐसा कांग्रेस में मुद्दत बाद हुआ है। वरना इस पार्टी में तो ये रिवायत सी बन गई थी कि सदन का नेता अपनी ढपली बजाता। और संगठन का नेता अपना राग गाता । जमुना देवी के दौर से देखिये, सुभाष यादव,और फिर सुरेश पचौरी तक,सदन में कांग्रेस के नेता अलग । उनके संघर्ष अलग । रणनीति भी अलग। संगठन के नेता अलग और उनकी अलग ही रणनीति। यही वजह रही कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस हमेशा से बिखरी हुई नजर आई। जनता दोनों पार्टियों को करीब से देख रही है। एक तरफ बीजेपी है जहां कितना ही बड़ा हो नेता पार्टी के साये से बाहर नहीं जा सकता। और दूसरी तरफ कांग्रेस जहां पार्टी से नहीं नेता के कद से कहानी शुरु होती है। लेकिन इस बार इत्तेफाक से मध्यप्रदेश में पार्टी के साथ नेता भी एक ही है। अब तक कार्यकर्ता नेता की आस्था में पार्टी को भूलकर भटकते रहे हैं।लेकिन अब ये तय हो चुका है मध्यप्रदेश में कांग्रेस कथा राजा से शुरु होगी और राजा पर ही खत्म।। महीनों से कांग्रेस जिस फैसले का इंतजार कर रही थी। हफ्ते भर के भीतर प्रदेश कांग्रेस में हुए दो फैसलों ने प्रदेश कांग्रेस में छाया कुहासा तकरीबन साफ कर दिया। अभी तक कार्यकर्ता अपनी ही कांग्रेस की फिक्र में दुबले हो रहे थे। पर अब चिंता बीजेपी को करनी है। जो प्रदेश में लगभग खत्म हो चुकी कांग्रेस के हाल देख कर ये मान बैठी थी कि बगैर किसी मशक्कत के प्रदेश में बीजेपी अपनी हैट्रिक बना लेगी। तीन साल बीजेपी को कुछ नहीं करना पड़ा। पचौरी खुद कांग्रेस का जितना पलीता लगा सकते थे। लगा चुके। पैराशूट से आये पचौरी बोरिया बिस्तरा समेट कर दिल्ली लौट चुके हैं। कांग्रेस अब दिग्गी का दौर देखेगी । और यही बात बीजेपी के लिये परेशान करने वाली है। नेता एक है तो जाहिर है कि अब सदन से लेकर संगठन तक कांग्रेस के फैसले एक होंगे। संघर्ष एक होगा। कांग्रेस के सामने बस एक ही चुनौती है। ये चुनौती,अपनी ही पार्टी के उन पॉवर सेंटर्स से है। पचौरी के दौर में जिनका फ्यूज़ पूरी तरह उड़ा हुआ था। लेकिन उम्मीद की जानी चाहिये कि लो प्रोफाइल कांतिलाल भूरिया प्रदेश में पार्टी के इन पॉवर सेंटर्स के आड़े नहीं आयेंगे। इम्तेहान के पहले की प्रिपेशन लीव सुरेश पचौरी ने समर वेकेशन्स की तरह गुजार दीं। अब इम्तेहान की तैयारी के दौरान ही कांग्रेस को इम्तेहान भी देना है। कुल जमा ढाई साल का वक्त बचा है। कहने को ये कांतिलाल भूरिया और अजय सिंह का इम्तेहान है। लेकिन असल परीक्षा तो उस राजा की है। दस साल के राज के बाद जिसे इस सूबे ने वनवास दे दिया था। वनवास में रहते भी इस प्रदेश से दिग्गी राजा का मोह कभी नहीं छूटा। दिग्विजय सिंह के साथ मध्यप्रदेश में दस साल पहले का इतिहास फिर लौट रहा है। दस साल बाद इस सूबे की तस्वीर में फर्क बस इतना आया है कि कांग्रेस और बीजेपी के पाले बदल चुके है। बीजेपी के पास दो बार लगातार चैम्पियन होने का हौसला है। हार के बाद खड़ी हो रही कांग्रेस के पास नई कप्तानी के साथ काबिल कोच का आत्मविश्वास है। बीजेपी को समझना होगा कि अब कांग्रेस को सस्ते में लेना भारी भी पड़ सकता है। क्रिक्रेट की तरह ही होती है राजनीति भी आखिरी गेंद भी जीत हार का फैसला बदल सकती है।
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