Sunday, June 28, 2015

जात की बात


हिन्दुस्तान वो मुल्क है..जहाँ हर बात जात से ही शुरु होती है। जात से संबोधन। जात से सत्कार। और जात से तय होती है ब्याह संबंधों की  बात। यही वजह है कि सियासी दलों के लिये जातियाँ राजनीति का विषय बन गईं। देशभक्तों के  इस देश में सिर्फ हिन्दुस्तानी होना काफी नहीं है। अपनी पहचान के लिये जात का होना भी जरुरी है। इसी जाति  के आधार पर अब जबकि हमारी आपकी गिनती होने जा रही है तो जाति की ही बात पर उठ रहे हैं सवाल। दो खेमें बंट गये हैं। एक वो लोग हैं जो जाति की जनगणना के हक में खड़े हैं। इस दलील के साथ कि अगर जातियों की गिनती हो जायेगी। तो दलितों की राजनीति करने वालों की हकीकत सामने आ जायेगी। अभी तक दलितों और पिछड़ों की आबादी को लेकर जो हवा हवाई दावे किये जाते रहे। उनके बजाये अब सामने होंगे जातियों के सही सही आँकड़ें। साठ साल से जाति पात के भेद को खत्म करने के कितनी ही बातें की गईं। लेकिन इस देश में आज भी अदनी सी नौकरी में भी जाति का कॉलम भरना  ज़रुरी होता है। असल में भारत की तासीर ऐसी है कि इस देश के गुणधर्म जाति और सम्प्रदाय के आधार पर ही तय होते हैं। तो फिर इसमें कोई बुराई नहीं कि जाति के आधार पर ही हम सबकी गिनती भी हो जाये। इससे सरकारी योजनाओँ को आमजन तक पहुंचाने के साथ, आरक्षण नीति के लिये भी सरकार को जातियों की सही जानकारी मिल जायेगी। लेकिन जाति पूछकर की जा रही ये गिनती उस सर्जरी की तरह है। जिसमें इलाज के साथ शरीर के कुछ हिस्से का नुकसान होना तय है।  जाति के आधार पर गिनती होगी तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जातिवाद की सोच को भी बढावा मिलेगा। और समाज जाति के आधार पर बंट जायेगा। ज़ाहिर है अभी तक धर्म के मुताबिक बनता रहा पॉलीटिकल पार्टियों का वोट बैंक। अब जाति के अनुसार बने। ये देश के सामाजिक ढाँचे के लिये भी खतरा है।लेकिन अपने ही घटक दलों के एक राय ना होने के बावजूद यूपीए की सरकार ने  जाति आधारित जनगणना को आखिर मंज़ूरी तो दे ही दी। बीजेपी ने भी आखिरकार इस फैसले को मंज़ूर कर लिया। हाँलाकि बीजेपी जिस ज़मीन से आई है वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इसका कड़ा विरोध कर रहा है। लेकिन इस सबके बावजूद इसी जून महीने से जाति की जनगणना शुरु हो रही है। जाति पूछकर होगी हिन्दुस्तान के आम आदमी की गिनती। देश के सर्वधर्म समभाव के चरित्र को बचाये रखने के लिये ये बेहतर होता कि जिस तरह 1931 के बाद से आज तक जाति से गिनती नहीं की गई।  दस साल बाद हो रही इस जनगणना में भी इस गणना को स्थगित ही रखा जाता है। बेहतर होता कि जाति के बजाये इस देश की आर्थिक स्थिति का आँकलन किया जाता। जिससे इंडिया शाइनिंग और हो रहा भारत निर्माण जैसे सियासी नारो के शोर में इस देश की सच्ची तस्वीर सामने आ जाती। और हम जान पाते कि देश को विकास की राह पर लाने अभी और कितने कदम चलने बाकी हैं। मुल्क की तरक्की का पैमाना मुँबई दिल्ली का बीएमडब्लू में सैरसपाटा करने वाला हिन्दुस्तानी नहीं है। ये तय होता है,बरेली,बासौदा,मुज़फ्प्फनगर में रहने वाले उस आम आदमी से जो आज भी बैंक की किस्तों पर सुनहरी ज़िन्दगी का ख्वाब बुनता है। ये देश का वही आम आदमी है। जो जात में यकीन रखता है। जो जात से संबोधन और सत्कार करता है। अब अपनी जात के साथ ये मुल्क की गिनती में आयेगा।

No comments: