सरकार की पहली पारी में मध्यप्रदेश सरकार के कप्तान शिवराज सिंह को एक अच्छा नेता और एक कमजोर प्रशासक का विशेषण दिया गया था । शिवराज ने पिछली पूरी पारी इस आरोप को अपनी पीठ पर ढोया कि प्रशासन पर उनकी पकड़ नही है। मंत्री,मुख्यमंत्री नहीं अधिकारी चला रहे हैं मध्यप्रदेश की सरकार। लेकिन अपनी बेदाग छवि की बदौलत दुबारा सत्ता में आए शिवराज लगता है कि अब कमजोर प्रशासक के खांचे से निकलने अब छटपटा रहे हैं। शिवराज की दूसरी पारी की शुरुवात से ही देखें तो मुख्यमंत्री ने जब जहां मौका मिला प्रशासन को कसने में देर नहीं की। और अब जबकि सरकार के कार्यकाल का करीब ढाई साल बीत चुका है और तकरीबन इतना ही वक्त चुनाव में बाकी भी है,शिवराज सख्त हो चले हैं। तीन दिन सरकार के अलग अलग विभागों की धुआंधार समीक्षा और फिर उसके बाद एक अगस्त से सारे विभागों की एक साथ समीक्षा करने जा रहे हैं शिवराज। समीक्षा केवल विभागों के कामकाज की ही नहीं होगी। अफसर से लेकर मंत्री तक सबके इसके दायरे में आएंगे। अच्छे काम का ईनाम मिलेगा और खराब प्रदर्शन पर चेतावनी। शिवराज की ये सख्ती लाजिमी भी है। और हर लिहाज से सराहनीय।पिछली बार भाजपा अपनी सरकार के कामकाज के बूते ही सत्ता में लौटी थी। लाड़ली लक्ष्मी जैसी सरकार की योजनाओं ने मामा शिवराज की नैया पार लगा दी थी। लेकिन दस साल के शासन के बाद सरकारें भी सुकून में आ जाती है। और मंत्री बेलगाम होने लगते हैं। दस साल के शासन के बाद हुई दिग्गी सरकार की शर्मनाक हार सबने देखी है। शिवराज उस गल्ती को दोहराना नहीं चाहते।बेलगाम मंत्रियों पर लगाम कसने संगठन तो ही है खुद शिवराज भी विभागीय समीक्षा के जरिए मंत्रियों के छै माही इम्तेहान लेते रहते हैं। वो सरकार को भी सुकून में आने का कोई मौका नहीं देना चाहते,इसीलिए खुद अधिकारियों के साथ बैठकर मैराथन बैठकें कर रहे हैं। एक एक विभाग में कहां कमी, कहां चूक की समीक्षा की जा रही है। इसके पहले भी काम में कसावट लाने के लिए मुख्यमंत्री ने अधिकारियों और मंत्रियों को डायरी मेंटेन करने भी कहा था जिसमें कहा गया था कि वो अपने दिन भर के कामकाज का ब्यौरा लिखेंगे। शिवराज की ये सख्ती , वक्त से पहले खुद काम के लिए जागने और पूरी सरकार को जगाने की ये कोशिश बताती है कि शिवराज उन विद्यार्थियों में से नहीं है। जो इम्तेहान सिर पर आने के बाद ही तैयारी करते हैं। वैसे भी राजनीति में हर दिन इम्तेहान होता है भले परीक्षाएं पांच साल में एक दफा हों। हमेशा परीक्षा के लिए तैयार रहना और लगातार होमवर्क करते रहना शिवराज की अपनी आदत हो सकती है। लेकिन मुमकिन है कि ये आदत उन्हे भाजपा जैसी पार्टी से संस्कार के रुप में भी मिली हो। भाजपा भी उन पार्टियों में से है जो पांच साल बाद केवल चुनाव के वक्त दौरे संपर्क करने के बजाए, जनता से मिलने के बजाए पूरे साल काम करने में यकीन रखती है। आखिर शिवराज भी तो उसी पार्टी से आते हैं। ये और बात है कि जिस चेहरे के दम पर भाजपा अपना अगला चुनाव लड़ने जा रही है उस एक चेहरे पर हर कसौटी पर खरा उतरने का दबाव ज्यादा है। इसलिये मेहनत भी ज्यादा है,मुस्तैदी भी ज्यादा। शिवराज जैसी फुर्ती फिलहाल उनके मंत्रिमण्डल सहयोगियों और अधिकारियों में दिखाई नहीं देती। लेकिन जिस मिशन के लिए अकेले के दम पर शिवराज मैराथन कर रहे हैं, उसे जीतने के लिए पूरी टीम का एक साथ जुटना जरुरी है। केवल कप्तान का अच्छा परफारमेंस टीम की जीत का भरोसा नहीं हो सकता। हर खिलाड़ी को अपनी पारी पूरी ईमानदारी और मेहनत से खेलनी होगी। ये ठीक है कि कूल कप्तान के साथ टीम ढीली ना पड़ जाए इसके लिए वक्त रहते सख्ती भी जरुरी है।
Sunday, June 28, 2015
सख्त हुए शिवराज
सरकार की पहली पारी में मध्यप्रदेश सरकार के कप्तान शिवराज सिंह को एक अच्छा नेता और एक कमजोर प्रशासक का विशेषण दिया गया था । शिवराज ने पिछली पूरी पारी इस आरोप को अपनी पीठ पर ढोया कि प्रशासन पर उनकी पकड़ नही है। मंत्री,मुख्यमंत्री नहीं अधिकारी चला रहे हैं मध्यप्रदेश की सरकार। लेकिन अपनी बेदाग छवि की बदौलत दुबारा सत्ता में आए शिवराज लगता है कि अब कमजोर प्रशासक के खांचे से निकलने अब छटपटा रहे हैं। शिवराज की दूसरी पारी की शुरुवात से ही देखें तो मुख्यमंत्री ने जब जहां मौका मिला प्रशासन को कसने में देर नहीं की। और अब जबकि सरकार के कार्यकाल का करीब ढाई साल बीत चुका है और तकरीबन इतना ही वक्त चुनाव में बाकी भी है,शिवराज सख्त हो चले हैं। तीन दिन सरकार के अलग अलग विभागों की धुआंधार समीक्षा और फिर उसके बाद एक अगस्त से सारे विभागों की एक साथ समीक्षा करने जा रहे हैं शिवराज। समीक्षा केवल विभागों के कामकाज की ही नहीं होगी। अफसर से लेकर मंत्री तक सबके इसके दायरे में आएंगे। अच्छे काम का ईनाम मिलेगा और खराब प्रदर्शन पर चेतावनी। शिवराज की ये सख्ती लाजिमी भी है। और हर लिहाज से सराहनीय।पिछली बार भाजपा अपनी सरकार के कामकाज के बूते ही सत्ता में लौटी थी। लाड़ली लक्ष्मी जैसी सरकार की योजनाओं ने मामा शिवराज की नैया पार लगा दी थी। लेकिन दस साल के शासन के बाद सरकारें भी सुकून में आ जाती है। और मंत्री बेलगाम होने लगते हैं। दस साल के शासन के बाद हुई दिग्गी सरकार की शर्मनाक हार सबने देखी है। शिवराज उस गल्ती को दोहराना नहीं चाहते।बेलगाम मंत्रियों पर लगाम कसने संगठन तो ही है खुद शिवराज भी विभागीय समीक्षा के जरिए मंत्रियों के छै माही इम्तेहान लेते रहते हैं। वो सरकार को भी सुकून में आने का कोई मौका नहीं देना चाहते,इसीलिए खुद अधिकारियों के साथ बैठकर मैराथन बैठकें कर रहे हैं। एक एक विभाग में कहां कमी, कहां चूक की समीक्षा की जा रही है। इसके पहले भी काम में कसावट लाने के लिए मुख्यमंत्री ने अधिकारियों और मंत्रियों को डायरी मेंटेन करने भी कहा था जिसमें कहा गया था कि वो अपने दिन भर के कामकाज का ब्यौरा लिखेंगे। शिवराज की ये सख्ती , वक्त से पहले खुद काम के लिए जागने और पूरी सरकार को जगाने की ये कोशिश बताती है कि शिवराज उन विद्यार्थियों में से नहीं है। जो इम्तेहान सिर पर आने के बाद ही तैयारी करते हैं। वैसे भी राजनीति में हर दिन इम्तेहान होता है भले परीक्षाएं पांच साल में एक दफा हों। हमेशा परीक्षा के लिए तैयार रहना और लगातार होमवर्क करते रहना शिवराज की अपनी आदत हो सकती है। लेकिन मुमकिन है कि ये आदत उन्हे भाजपा जैसी पार्टी से संस्कार के रुप में भी मिली हो। भाजपा भी उन पार्टियों में से है जो पांच साल बाद केवल चुनाव के वक्त दौरे संपर्क करने के बजाए, जनता से मिलने के बजाए पूरे साल काम करने में यकीन रखती है। आखिर शिवराज भी तो उसी पार्टी से आते हैं। ये और बात है कि जिस चेहरे के दम पर भाजपा अपना अगला चुनाव लड़ने जा रही है उस एक चेहरे पर हर कसौटी पर खरा उतरने का दबाव ज्यादा है। इसलिये मेहनत भी ज्यादा है,मुस्तैदी भी ज्यादा। शिवराज जैसी फुर्ती फिलहाल उनके मंत्रिमण्डल सहयोगियों और अधिकारियों में दिखाई नहीं देती। लेकिन जिस मिशन के लिए अकेले के दम पर शिवराज मैराथन कर रहे हैं, उसे जीतने के लिए पूरी टीम का एक साथ जुटना जरुरी है। केवल कप्तान का अच्छा परफारमेंस टीम की जीत का भरोसा नहीं हो सकता। हर खिलाड़ी को अपनी पारी पूरी ईमानदारी और मेहनत से खेलनी होगी। ये ठीक है कि कूल कप्तान के साथ टीम ढीली ना पड़ जाए इसके लिए वक्त रहते सख्ती भी जरुरी है।
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