और अब बाबा बोल गए। बाबा रामदेव का बवाल मचाता बयान कि संसद में हत्यारे, लुटेरे और जाहिल बैठे हैं। विरोध में सांसदों की एकजुटता भी स्वाभाविक है। लेकिन इस सबके बीच अस्वाभाविक बहुत कुछ है। कालेधन के खिलाफ संघर्ष छेड़ रहे एक भगवाधारी बाबा के मूंह से ये शब्द अस्वाभाविक हैं। अस्वाभाविक तब भी थे,जब टीम अन्ना की अगुवाई में देश के सांसदों पर इसी तरह की टिप्पणी की गई थी। ओम पुरी से लेकर किरण बेदी और किरण बेदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक,सांसदों को लेकर विवादित बयान आते रहें हैं। लेकिन इस बार यहां सवाल सांसदों की गरिमा से पहले उन लोगों के अपने सम्मान का भी है। जिन पर देश ने अभी अभी भरोसा करना शुरु किया है। उस वक्त में भरोसा करना शुरु किया हैजब पूरा देश ही विश्वास के संकट से गुजर रहा है। ऐसा नहीं है कि कालेधन के खिलाफ लड़ रहे बाबा रामदेव और लोकपाल की मांग कर रहे अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी पर सवाल ना उठे हों। बाबा रामदेव का अपना भी भारी भरकम कारोबार है। सब जानते हैं। यानि शक की गुंजाइश हर जगह है। लेकिन फिर भी देश इन नामों पर उनके कहे पर यकीन करता है। समाज के लिए, देश के लिए लड़ रहे इन सामाजिक नेताओं को भी देश के इस भरोसे को बनाए रखना होगा। विस्तार में देखिए, तो सांसद भी, इस देश और इस देश के समाज से अलग नहीं है। नेता भी हमारे आपके बीच के ही प्राणी है। ये ठीक है कि उसमें बुराईयों का ग्राफ इनदिनों कुछ बढा हुआ है, और पब्लिक फील्ड में होने से दिखाई भी दे रहा है। लेकिन नैतिक मूल्यों का पतन तो हर तरफ हो रहा है। संसद अकेली नहीं है, हत्यारे, लुटेरे और जाहिल पूरे समाज में बढ रहे हैं। इसका मतलब ये कतई नहीं कि बाबा रामदेव इस देश के पालनहारों नेताओं को आईना ही ना दिखाएं। दिखाइए। जरुर दिखाइए। लेकिन इतना ख्याल रखते हुए कि भाषा संयत की सीमा को ना लांघे। ज़बानी हिंसा ठीक नहीं। बाबा रामदेव ने बापू की तरह अहिंसक अनशन किया था। अन्ना कुछ नहीं बोले। लेकिन पूरा देश अन्नामय हो गया था। ये बताता है कि बूढी हो चुकी आजादी में भी इस देश में गांधी के फार्मूले अब भी हिट और फिट हैं। बापू ने ना ही भाषा में ना व्यवहार में, हिंसा को कभी कहीं जगह नही दी। अहिंसा के बूते इस देश को आजाद करा लिया। फर्क बस इतना है कि तब लड़ाई बाहर वालों से थी। अब बाबा को ये समझना होगा कि इस बार लड़ाई अपनों से है। जनता को फैसला करने दीजिए। स्याह कहां और उजला कौन सा। दोनों एक ही जुबान बोलेंगे तो फिर फर्क कैसे होगा। पब्लिक सब देखती है। सब जानती है। फिक्र मत कीजिए बाबा। आप तो बस संयम रखिए।
Sunday, June 28, 2015
संयम रखो बाबा
और अब बाबा बोल गए। बाबा रामदेव का बवाल मचाता बयान कि संसद में हत्यारे, लुटेरे और जाहिल बैठे हैं। विरोध में सांसदों की एकजुटता भी स्वाभाविक है। लेकिन इस सबके बीच अस्वाभाविक बहुत कुछ है। कालेधन के खिलाफ संघर्ष छेड़ रहे एक भगवाधारी बाबा के मूंह से ये शब्द अस्वाभाविक हैं। अस्वाभाविक तब भी थे,जब टीम अन्ना की अगुवाई में देश के सांसदों पर इसी तरह की टिप्पणी की गई थी। ओम पुरी से लेकर किरण बेदी और किरण बेदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक,सांसदों को लेकर विवादित बयान आते रहें हैं। लेकिन इस बार यहां सवाल सांसदों की गरिमा से पहले उन लोगों के अपने सम्मान का भी है। जिन पर देश ने अभी अभी भरोसा करना शुरु किया है। उस वक्त में भरोसा करना शुरु किया हैजब पूरा देश ही विश्वास के संकट से गुजर रहा है। ऐसा नहीं है कि कालेधन के खिलाफ लड़ रहे बाबा रामदेव और लोकपाल की मांग कर रहे अन्ना हजारे, अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी पर सवाल ना उठे हों। बाबा रामदेव का अपना भी भारी भरकम कारोबार है। सब जानते हैं। यानि शक की गुंजाइश हर जगह है। लेकिन फिर भी देश इन नामों पर उनके कहे पर यकीन करता है। समाज के लिए, देश के लिए लड़ रहे इन सामाजिक नेताओं को भी देश के इस भरोसे को बनाए रखना होगा। विस्तार में देखिए, तो सांसद भी, इस देश और इस देश के समाज से अलग नहीं है। नेता भी हमारे आपके बीच के ही प्राणी है। ये ठीक है कि उसमें बुराईयों का ग्राफ इनदिनों कुछ बढा हुआ है, और पब्लिक फील्ड में होने से दिखाई भी दे रहा है। लेकिन नैतिक मूल्यों का पतन तो हर तरफ हो रहा है। संसद अकेली नहीं है, हत्यारे, लुटेरे और जाहिल पूरे समाज में बढ रहे हैं। इसका मतलब ये कतई नहीं कि बाबा रामदेव इस देश के पालनहारों नेताओं को आईना ही ना दिखाएं। दिखाइए। जरुर दिखाइए। लेकिन इतना ख्याल रखते हुए कि भाषा संयत की सीमा को ना लांघे। ज़बानी हिंसा ठीक नहीं। बाबा रामदेव ने बापू की तरह अहिंसक अनशन किया था। अन्ना कुछ नहीं बोले। लेकिन पूरा देश अन्नामय हो गया था। ये बताता है कि बूढी हो चुकी आजादी में भी इस देश में गांधी के फार्मूले अब भी हिट और फिट हैं। बापू ने ना ही भाषा में ना व्यवहार में, हिंसा को कभी कहीं जगह नही दी। अहिंसा के बूते इस देश को आजाद करा लिया। फर्क बस इतना है कि तब लड़ाई बाहर वालों से थी। अब बाबा को ये समझना होगा कि इस बार लड़ाई अपनों से है। जनता को फैसला करने दीजिए। स्याह कहां और उजला कौन सा। दोनों एक ही जुबान बोलेंगे तो फिर फर्क कैसे होगा। पब्लिक सब देखती है। सब जानती है। फिक्र मत कीजिए बाबा। आप तो बस संयम रखिए।
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