Sunday, June 28, 2015

कैसे बनेगा अपना मध्यप्रदेश !



बीती एक नवम्बर को मध्यप्रदेश ने अपनी स्थापना के 56 बरस पूरे कर लिए। राज्य सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए और पूरे प्रदेश में मनाया गया इस सूबे की सालगिरह का यादगार जलसा। यकीनन इन जलसों में इस सूबे के आम आदमी ने भी शिरकत की। हर जश्न में उसकी भी हिस्सेदारी थी। लेकिन इस प्रदेश के वाशिंदे ने खुद आगे बढकर अपने सूबे की सालगिरह मनाई हो,ये तस्वीर पूरे प्रदेश में कहीं दिखाई नहीं दी। मध्यप्रदेश की सालगिरह के नाम पर जहां जो  हुआ, सरकारी तौर पर ही हुआ। लेकिन ये तस्वीर कई सवाल खड़े करती है। सवाल ये कि जय महाराष्ट्र की तरह, आखिर मध्यप्रदेश का जयगान क्यों नहीं हो पाता। क्यों सरकारें ही मनाती हैं हर बार सालगिरह,आवाम से कभी ये आवाज क्यों नहीं आती? जवाब तलाशिए तो कुछ और नए सवाल खड़े होते जाते हैं। मध्यप्रदेश की अपनी कोई पहचान कहां है? वो तो भूगोल ऐसा था कि ह्रदय प्रदेश की संज्ञा मिल गई, वरना ये संकट भी बना ही रहना था। लेकिन इसके बावजूद भी संस्कृति और परंपरा की पहचान तो फिर भी नहीं मिल पाई। जिस तरह कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक देश के हर प्रदेश की अपनी खास संस्कृति है। परंपराओं के साथ भाषा  बोली होती है। मध्यप्रदेश के मामले में उसकी पहचान का खाना हमेशा खाली ही रहा। और 56 साल बाद भी खाली ही है। मध्यप्रदेश देश में अपनी तरह का वो इकलौता प्रदेश है जिसकी अपनी कहने को कोई भाषा नहीं है। छत्तीसगढ जब तक इस प्रदेश का हिस्सा रहा,तब तक आदिवासी इसकी संस्कृति और पहचान बने रहे। लेकिन छत्तीसगढ बन जाने के बाद तो पहचान का वो एक खास धड़ा भी अलग हो गया। ऐसा नहीं कि छत्तीसगढ के साथ आदिवासी पूरी तरह प्रदेश से अलग हो गए हों। आदिवासी प्रदेश के कुछ हिस्सों में अब भी हैं,लेकिन उनकी भी अपनी अलग अलग संस्कृतियां, पहनावे और परंपराएं हैं। कोई ऐसी एकजुटता नहीं कि उसे आप इस सूबे की शिनाख्त बना लें। आज जिस तरह गुजराती, मराठी, उड़िया, असमिया, बंगाली, बिहारी और यहां तक कि छत्तीसगढ़िया अपनी क्षेत्रीयता के साथ अपने वजूद पर गुरुर कर पाते हैं। अपनी बोली, अपनी भाषा अपनी संस्कृति के संकट से जूझ रहे इस प्रदेश के आम आदमी के पास इस गुरुर की कोई वजह नहीं है। पहचान के नाम पर इस प्रदेश के पास कुछ नदियां हैं। कुछ तीर्थ हैं। कुछ गिने चुने राजनेता है। लेकिन जिससे इस प्रदेश की पूरी आबादी को एक डोर में बांधा जा सके। भाषा की,संस्कृति की, परंपरा की वो डोर इस प्रदेश के पास नहीं है। मध्यप्रदेश गान लिखा जा चुका है। सरकारी विभागों की रिंगटोन में वो सुनाई भी देता है। लेकिन आम आदमी खुद अपने प्रदेश का जयगान करे इसके लिए  नए सिरे से कोशिश करनी होगी। भूगोल के भरोसे बहुत रह लिए ,अब मध्यप्रदेश को उसकी अपनी पहचान देनी होगी। जब तक इस सूबे के आम आदमी को, इस प्रदेश को वो पहचान नहीं मिल जाती।  तब तक चाहें जितने करोड़ खर्च कर दीजिए। दिवाली की तरह मना लीजिए स्थापना दिवस, ये सारे समारोह सरकारी जलसे ही बन पाएंगे। जब आम आदमी अपने प्रदेश से दिल से जुड़ेगा तब, तब सरकारें मैदानों में मनाए ना मनाए। इस प्रदेश का हर नागरिक अपने घर में, चौराहों पर मनाएगा प्रदेश का स्थापना दिवस। तो सूबे की 56 वीं सालगिरह पर ये संकल्प लें कि इस बरस ना सही, लेकिन अगले बरस ये प्रदेश अपनी नई पहचान के साथ अपनी वर्षगांठ मनाए। जय जय मध्यप्रदेश।

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