प्रबोधन,संस्कार और अनुशासन,जनसंघ के जमाने से भाजपा ने अपने कार्यकर्ता को ये तीन मंत्र दिये और इन्ही के बूते सियासी दलों में भाजपा का कार्यकर्ता हमेशा अलग नजर आता रहा। लंबे समय तक विपक्ष में रही इस पार्टी के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सत्ता के साथ फैलने वाले बाकी संक्रमणों से बचाना तब मुश्किल भी नहीं था। लेकिन लगातार दो बार सत्ता में रहने के बाद सादा जीवन उच्च विचार पर चलने वाले,संघ की मिट्टी से आये भाजपा के आम कार्यकर्ता के बर्ताव में भी बदलाव की बयार आ गई।कहते हैं सत्ता का सुख,अपने सुरुर के साथ गुरुर भी लाता है। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार की पहली पारी में तो पार्टी की अंदरुनी उठापटक मे ही निकल गई। उसी में उलझे रहे नेता और कार्यकर्ता। लेकिन भाजपा सरकार की दूसरी पारी में पटरी पर आई पार्टी और उसकी सरकार के बाद कार्यकर्ता से लेकर नेता तक इतनी तेजी से बदलाव हुए जो सतह पर दिखाई भी दे रहे हैं। पार्टी के नेता से लेकर एक साधारण से कार्यकर्ता तक आचार व्यवहार से लेकर जीने का अंदाज सबकुछ अब बदला हुआ दिखाई देता है। सरकार में रहने का सलीका सीखते सीखते भाजपा के नेता जाने कब उन बीमारियों के भी शिकार हो गये। अब तक जिस रोग के लिये केवल कांग्रेसियों को ही कोसा जाता था। कांग्रेस के मुकाबले खड़ा करके तुलना कीजिये तो जरा, तो देख पायेंगे कि पार्टी विथ डिफरेंस की पंचलाइन लेकर चली भाजपा में,अब कुछ भी अलग नहीं बचा। कुछ भी डिफरेंट नहीं। कांग्रेस ने कभी अपना दामन साफ होने का एलान नहीं किया तो कभी किसी ने उन पर एतराज भी नहीं किया। लेकिन हमेशा अपनी कमीज सफेद होने का दावा करती रही भाजपा के दामन पर दाग दिखाई दे रहे हैं। सत्ता में आने के साथ आई बीमारियों के लक्षण अब उभर आये हैं। लेकिन तसल्ली करनी चाहिये कि बीमारी फैले ना इसलिये समय रहते पार्टी ने इलाज शुरु भी कर दिया। भोपाल में तीन दिन चला प्रवेश प्रशिक्षण वर्ग उसी इलाज का पहला डोज था । कहते हैं बीमारी अगर जड़ पकड़ ले तो पूरा पेड़ सूख सकता है। लिहाजा भाजपा ने इलाज भी जड़ से ही शुरु किया है। प्रदेश भर के जिलो में तैनात पार्टी के जिलाध्यक्षों के साथ जिला मंत्रियों को याद दिलाया गया पार्टी का अनुशासन और संस्कार। शुचिता की राजनीति के पाठ पढाए गए। और साथ साथ पार्टी को अपने खून पसीने से सींचने वाले भूले बिसरे नेताओँ के साथ भाजपा के इतिहास की भी बात हुई। तीन दिन चले इस प्रवेश प्रशिक्षण वर्ग में किसी मैनेजमेंट क्लास की तरह नेताओं को टिप्स दिये गये कि पार्टी का चेहरा बने नेता और कार्यकर्ता सरकार के रुतबे में नहीं, सहानुभूति के साथ जनता से पेश आयें। राजनीतिक विश्लेषक की नजर से देखें तो ये पूरी पाठशाला ढाई साल बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव ती तैयारी दिखाई देती है। लेकिन उसके साथ भाजपा के इस वर्ग के पीछे वो फिक्र भी है। जिसमें कुशाभाऊ ठाकरे की पीढी के नेता ये मंजूर करने लगे हैं कि लगातार सत्ता में रहने से भाजपा भी कई बार कांग्रेस के रास्ते पर चलती दिखाई देती है। ये वर्ग भाजपा के भीतर बढी उसी फिक्र का नतीजा है। इस वक्त में जरुरी था ये पाठ। भाजपा के लिये जरुरी था अपने कार्यकर्ता को ये बताना कि उसे अलग दिखना है तो अपनी कमीज को चाहे जैसे हो सफेद भी रखना होगा। प्रयास करना होगा कि सार्वजनिक जीवन में आने के बाद लगने वाले दाग धब्बों से वो खुद को बचाये। इस वर्ग में कार्यकर्ताओँ की लिखित परीक्षा भी हुई। प्रबोधन भी हुए। अब कार्यकर्ता ने इसे कितना आत्मसात किया,ये कहना अभी मुश्किल है। लेकिन भाजपा इस मायने में सराहना की हकदार है। कि ये देश की उन चुनिदा पार्टियों में से एक है। जो मानती है कि राजनीतिक जीवन में रहने और काम करने के लिये उसकी पाठशाला भी जरुरी है। जहां नेताओं के प्रशिक्षण और प्रबोधन होते हैं। जहां बताये जाते हैं नेता के गुण दोष। इस लिहाज से वाकई दूसरे सियासी दलों को भाजपा से सीख लेनी चाहिये। खासतौर पर उन सियासी दलों को जहां की राजनीति में नेता की परिक्रमा से बड़ा कोई पाठ नही होता।
Sunday, June 28, 2015
ये पाठ जरुरी था !
प्रबोधन,संस्कार और अनुशासन,जनसंघ के जमाने से भाजपा ने अपने कार्यकर्ता को ये तीन मंत्र दिये और इन्ही के बूते सियासी दलों में भाजपा का कार्यकर्ता हमेशा अलग नजर आता रहा। लंबे समय तक विपक्ष में रही इस पार्टी के लिए अपने कार्यकर्ताओं को सत्ता के साथ फैलने वाले बाकी संक्रमणों से बचाना तब मुश्किल भी नहीं था। लेकिन लगातार दो बार सत्ता में रहने के बाद सादा जीवन उच्च विचार पर चलने वाले,संघ की मिट्टी से आये भाजपा के आम कार्यकर्ता के बर्ताव में भी बदलाव की बयार आ गई।कहते हैं सत्ता का सुख,अपने सुरुर के साथ गुरुर भी लाता है। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार की पहली पारी में तो पार्टी की अंदरुनी उठापटक मे ही निकल गई। उसी में उलझे रहे नेता और कार्यकर्ता। लेकिन भाजपा सरकार की दूसरी पारी में पटरी पर आई पार्टी और उसकी सरकार के बाद कार्यकर्ता से लेकर नेता तक इतनी तेजी से बदलाव हुए जो सतह पर दिखाई भी दे रहे हैं। पार्टी के नेता से लेकर एक साधारण से कार्यकर्ता तक आचार व्यवहार से लेकर जीने का अंदाज सबकुछ अब बदला हुआ दिखाई देता है। सरकार में रहने का सलीका सीखते सीखते भाजपा के नेता जाने कब उन बीमारियों के भी शिकार हो गये। अब तक जिस रोग के लिये केवल कांग्रेसियों को ही कोसा जाता था। कांग्रेस के मुकाबले खड़ा करके तुलना कीजिये तो जरा, तो देख पायेंगे कि पार्टी विथ डिफरेंस की पंचलाइन लेकर चली भाजपा में,अब कुछ भी अलग नहीं बचा। कुछ भी डिफरेंट नहीं। कांग्रेस ने कभी अपना दामन साफ होने का एलान नहीं किया तो कभी किसी ने उन पर एतराज भी नहीं किया। लेकिन हमेशा अपनी कमीज सफेद होने का दावा करती रही भाजपा के दामन पर दाग दिखाई दे रहे हैं। सत्ता में आने के साथ आई बीमारियों के लक्षण अब उभर आये हैं। लेकिन तसल्ली करनी चाहिये कि बीमारी फैले ना इसलिये समय रहते पार्टी ने इलाज शुरु भी कर दिया। भोपाल में तीन दिन चला प्रवेश प्रशिक्षण वर्ग उसी इलाज का पहला डोज था । कहते हैं बीमारी अगर जड़ पकड़ ले तो पूरा पेड़ सूख सकता है। लिहाजा भाजपा ने इलाज भी जड़ से ही शुरु किया है। प्रदेश भर के जिलो में तैनात पार्टी के जिलाध्यक्षों के साथ जिला मंत्रियों को याद दिलाया गया पार्टी का अनुशासन और संस्कार। शुचिता की राजनीति के पाठ पढाए गए। और साथ साथ पार्टी को अपने खून पसीने से सींचने वाले भूले बिसरे नेताओँ के साथ भाजपा के इतिहास की भी बात हुई। तीन दिन चले इस प्रवेश प्रशिक्षण वर्ग में किसी मैनेजमेंट क्लास की तरह नेताओं को टिप्स दिये गये कि पार्टी का चेहरा बने नेता और कार्यकर्ता सरकार के रुतबे में नहीं, सहानुभूति के साथ जनता से पेश आयें। राजनीतिक विश्लेषक की नजर से देखें तो ये पूरी पाठशाला ढाई साल बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव ती तैयारी दिखाई देती है। लेकिन उसके साथ भाजपा के इस वर्ग के पीछे वो फिक्र भी है। जिसमें कुशाभाऊ ठाकरे की पीढी के नेता ये मंजूर करने लगे हैं कि लगातार सत्ता में रहने से भाजपा भी कई बार कांग्रेस के रास्ते पर चलती दिखाई देती है। ये वर्ग भाजपा के भीतर बढी उसी फिक्र का नतीजा है। इस वक्त में जरुरी था ये पाठ। भाजपा के लिये जरुरी था अपने कार्यकर्ता को ये बताना कि उसे अलग दिखना है तो अपनी कमीज को चाहे जैसे हो सफेद भी रखना होगा। प्रयास करना होगा कि सार्वजनिक जीवन में आने के बाद लगने वाले दाग धब्बों से वो खुद को बचाये। इस वर्ग में कार्यकर्ताओँ की लिखित परीक्षा भी हुई। प्रबोधन भी हुए। अब कार्यकर्ता ने इसे कितना आत्मसात किया,ये कहना अभी मुश्किल है। लेकिन भाजपा इस मायने में सराहना की हकदार है। कि ये देश की उन चुनिदा पार्टियों में से एक है। जो मानती है कि राजनीतिक जीवन में रहने और काम करने के लिये उसकी पाठशाला भी जरुरी है। जहां नेताओं के प्रशिक्षण और प्रबोधन होते हैं। जहां बताये जाते हैं नेता के गुण दोष। इस लिहाज से वाकई दूसरे सियासी दलों को भाजपा से सीख लेनी चाहिये। खासतौर पर उन सियासी दलों को जहां की राजनीति में नेता की परिक्रमा से बड़ा कोई पाठ नही होता।
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