....वो बेवजह दूसरी जिंदगियों में आई मुश्किलों की ढेर सारी बातें करने लगी है....सिर्फ इसलिए कि खुद अुपनी जिंदगी से जूझने की हिम्मत जुटा सके, खुद अपनी, पीड़ा का पैरामीटर कुछ कम कर सके.....
सड़क के मोड़ को दुख का कोना बना लिया है उसने...घर के मोड़ पर गाड़ी रोकता है, और चीख कर रो लेता है....ताकि सुबह से शाम तक घर दफ्तर में खुद को सामान्य दिखा सके....
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उस दफ्तर के लोग चुटकुले ज्यादा शेयर करते हैं अब... जानबूझकर करते हैं ये साफ दिखाई भी देता है......वो बहुत हंसती नहीं अब ....पर दोस्त कमबख्त कोशिश भी नहीं छोड़ते....
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वो पूरे दिन अपनी जान से दूर रहने के बाद, सिर्फ इसलिए अपने बच्चे से खुद को दूर कर लेती है....कि एक मां की सूनी आंखों में कहकहे लौटा देने का यही एक रास्ता है उसके पास......
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इंसानियत....किसी किताब में दर्ज नहीं होती ....
जीने का कोई तय सलीका नहीं होता.....
रोज ब रोज खुद सिखाती जाती है जिंदगी ......कि कैसे जीया जाता है......
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