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पटिये....
अर्ज़ किया है.....
Saturday, April 28, 2018
वो रंग ही कच्चा था..
वो रंग ही कच्चा था..
और रेशे इतने सख्त
कि कोई रंग ना चढ पाया कभी..
सूर्खीं बाकी रही तो बस..
रंगरेज की खाली हथेलियों में...
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पटिये
सनक ,जूझने की..
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(63)
उन मौसमों की याद में.... कश्मीर सिर्फ समाचार ही...
दुख... केवल सब्र की ज़मीन नहीं... दुख जीवन की उर...
....वो बेवजह दूसरी जिंदगियों में आई मुश्क...
खत....कि खता हुई थी... उसे लिखना....जिसने चीख क...
आसान नहीं होता... सिसकियों से टूट रही खामोशी ...
कितने सवाल होते हैं, जिनके जवाब जिंदगी के पास ...
कुछ लम्हे अपने नाम के हो कोई इत्मीनान की शाम ...
स्कूल बस में, उम्मीद चढती हैं...सपने चढत...
खत लिखना आपसे ही सीखा था....यहां सब कुशल मंगल ...
पुत्री का खत पिता के नाम द्वारा- शिफाली हूं ...
ये सूनी सूनी दोपहरें.. ये बासी खाली खाली दिन ...
कुहासी सुबहें दोपहरें निगल लेती हैं शाम ...
जो, मैं भी जी ही लेती सिल्क साड़ी का सपना......
धरती जिस रंग की चादर पहनें, गुनगुनी धूप में स...
मौके पर ही मौत ना हुई, तो मौत का मतलब ही नहीं ...
बेशक, जिंदगी आपके हिस्से सिर्फ और सिर्फ सवाल ही ...
ये चढते दिन की तस्वीर हकीकत है हमारे जीवन की ...
नींद खुलना हमेशा जागना नहीं होता कितने बरस नी...
सुबह मैने एक लकीर मिटाई और अपनी जिंदगी में हौसला....
वो जिन्हे जुबां की ज़मीन नहीं...
तो हं...
शिफाली हूं
तुम इस इतवार का एतबार मत करना.....
# मुहब्बत वाले दिन के सद्के
तो सांसे थम जाएंगीं.....
वो बरसों लूप मे सुने जाते हैं...
तुम्हारे नाम का रंग
वो बायस्कोप बचपन वाला..
पर रंग छोड़ जाते हैं....
वो रंग ही कच्चा था..
बांट लेंगे हम आधा आधा....
कभी यूं भी तो हो.......
तुम क्या समझो ...जानीं....
# रेल सी गुज़र जाऊँ ..
कोशिश रहेगी कि इनके ज़ेहन में फर्क सिर्फ अच्छे बुर...
जिंदगी छूटी थी यूं......
भरोसा ही तो था
नदी का घर सूना है
आसमानी रंग होना चाहती है.....
अलविदा...
जब सिसकी बन कर आएंगे दरिया में बहाए जाएंगें...
शिफाली हूं
उस रोज़ से पहले.....बहुत कुछ बाकी है करने को......
# उम्र सिर्फ कैलेण्डर की तारीखों में दर्ज नहीं होती
मैं गौरा नहीं बन पाई
कि वो प्रस्थान बिंदू जीवन का स्थाई हो जाए
ये सेल्फी विद सीएम है जी
फिर तेरी याद का मौसम है.....
बीतने से पहले.... रीतना नहीं है
बेमौसम लगी झड़ी जैसे ,
हाइवे पर खड़े पेड़ जो कुछ कह पाते तो क्या कहते....
कैलेण्डर में सिर्फ तारीखें दर्ज नहीं होती.....
मेरी मौजूदगी
ख्वाब बनकर कोई आएगा
सर्द मौसम के गुले - शफ़्फाफ की मानिन्द,
हर छुअन से घबरा रही है......
जहां से तुम मोड़ मुड़ गए थे........
उपजा था प्रेम कहीं..
मेरी दोस्त किताब
pyar pyar
आज ही के दिन रुख़सत हुए... कितनों का पहला क्रश थे ...
जो बोली धरा....
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