Saturday, April 28, 2018

जहां से तुम मोड़ मुड़ गए थे........

हांफते दिनों को
थामने कोयल अब भी आती है...
सांसों को थामती है, बेलौस गाती है....
शाम ढले.,आसमान की जमीन पर 
अब भी हर शाम ऊगता है वो सितारा
उस खास लम्हे का गवाह बना था
जो उस रोज़
छाया गीत में छाया गांगुली
अब भी सुनाती हैं तुम्हारी फरमाईश
चश्में नम मु्स्कुराती रही रात भर.....
अब भी वैसे ही भींजे होते हैं तकिए....
अब भी किसी दोपहर
आता है,
तेज धूप का एक टुकड़ा
आंखों में तुम्हारा अक्स छोड़ जाता है.....
अब भी, दरिया में
छोड़े जाते हैं साथ जीने मरने के
सुच्चे झूठे वादे
अब भी कुछ राहें, याद की फेहरिस्त खोल जाती हैं
कि अब भी ये जिंदगी वहीं खड़ी है.....
जहां से तुम मोड़ मुड़ गए थे........

.............................शिफाली

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