कितने सवाल होते हैं, जिनके जवाब जिंदगी के पास भी नहीं होते. मैं चाहती हूं कि मेरी जिंदगी की रुठी छूटी ख्वाहिशों का सिक्वल ना बने तुम्हारी जिंदगी। मैं चाहती हूं कि मेरे हादसे तुम्हारा तजुर्बा ना बनने पाएं. मैं चाहती हूं कि अपनी वसीयत में तुम्हारे नाम खिलते गुलाब, चहकती चिड़ियाएं ऊंघते देवदार लिख जाऊं कि ये दिल नहीं तोड़ेंगे कभी।
और तुम्हारे वो मासूम सवाल..कि जिनके हल गूगल के पास भी नहीं है. ये जिंदगी के सवाल, जिनके जवाब मुझे भी नहीं मिले आज तक वो तुम्हारे साथ छोड़े जाऊंगी कि तुम ढूंढ लोगे जवाब ..उम्मीद है मुझे.
बीतते बेदर्द दिसम्बर का एक ख्याल है बस... वक्त गुज़रा है हम नहीं गुज़रे...
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