Saturday, April 28, 2018

मेरी मौजूदगी

जब बेहिसाब चलती जुबान
चुन लेगी खामोशी
और पूरे दिन भागते पैर
फिर खड़े होना भी भूल जाएंगे
हथेलियां , बिसरा देंगी वो लम्स 
जो किसी रोज जी जाने की वजह बना था ...
और आंखे किसी स्याह से मंजर में डूब जाएंगी
जब दुनिया शिकवे नहीं,
बेहिसाब मोहब्बत लिए आएगी तुम्हारे करीब
गिनाएगी कि तुम्हारा होना कितना जरुरी था
कि जब भूला दिए जाएंगे
तुम्हारे एब सारे....
वो सारी बहसें जो बेवजह किया करती थीं तुम
और याद किए जाएंगे
सिर्फ और सिर्फ वो किस्से
कि जिनसे तुमने कई जिंदगियां गुलज़ार की थीं.....
मटकी से उठता धुआं
जिस रोज़ तुम्हारी राह का
ईंधन बनेगा
नींद कॉम्पोज़ का ओवरडोज़ लेकर सो जाएगी.....
जिस रोज भागती जिंदगी की रील फ्रीज़ हो जाएगी ...
ए फोर साइज़ के फ्रेम में......
ठीक उसी दिन
दुनिया के हाजिरी रजिस्टर में
दर्ज होगी तुम्हारी मौजूदगी
शिफाली

No comments: