Saturday, April 28, 2018

आसान नहीं होता...
सिसकियों से टूट रही खामोशी में 
हौसले का मरहम रख पाना...

जब सात्वंना देते हाथ 
संभालते कंधे 
सब रीत चले हों 
बीत चले हों...
तब आंसूओं को समेटकर 
झूठी मुस्कान चेहरे पर लाना 
आसान नहीं होता...

आसान नहीं होता 
फिर मंदिर में सांझ का दीपक लगाना 
भगवान से कह पाना, 
तुम्हारी यही मर्जी थी शायद

आसान नहीं होता...
उसी दुनिया में जीना...खड़े होकर 
चल पाना...जहां रस्ते, गली, चौराहे पर 
तुम्हारी याद ठहरी है....

आसान नहीं होता 
तुम्हारी तस्वीर को
खुद अपनी आंखों से
छिपा जाना, 
कि तुम्हे तस्वीर बनते नहीं देखना था हमें.....

आसान नहीं होता...
दुखों का पहाड़ चढकर 
फिर उसी दुनिया में लौट पाना ...
जहां, जीवन नश्वर है...
इस सबसे बड़े सच से साक्षात के बाद भी
छल अपने पैर पसार ही लेता है.....

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