Saturday, April 28, 2018

खत....कि खता हुई थी...
उसे लिखना....जिसने चीख कर कहे गए लफ्ज़ भी हर बार अनसुने कर दिए थे....और ये जानते हुए लिखना कि ये खत भी अनदेखा रह जाना है...
पर सुना था किसी से कि लिखना मन की उदासियों में मुस्कान टांक देना है
सो लिख दिया ....खत का कायदा होता है ना कि पहली लाईन में लिखा जाता है तुम कैसे हो...तुम जैसे भी हो...मेरे हो... जैसा कोई फिल्मी डॉयलॉग नहीं कहना मुझे...नहीं कहना कि तुम मेरे थे ही कहां...
और सच कितनी तसल्ली है इस सच्चाई को मंजूर कर लेने में कि वो मोहब्बत थी ही नहीं कि ख्वाब की दुनिया हमेशा कांच की ही होती है ...किसी की मोहब्बत के भरम में जीना....और फिर उस भरम को अपने हाथों तोड़ देना....हिम्मत का काम होता है...
माऊंट एवरेस्ट पर बिना सांसों के चढने जितनी हिम्मत....
कि बेअसर रहना उस निगाह से जिसे देखने की हसरत में आप जाने कितनी दोपहरें शाम कर चुके हों....बेताल्लुक रहना, उस छुअन से...जो चाय का कप संभालते हुए ...बेखुदी में हथेलियों पर दर्ज रह गई थी..बेफिक्र रहना उस ख्याल से ...कि जाने आज फेसबुक की तस्वीर पर उसका दिल चस्पा होगा भी या नहींआंसूओं की बारिश...दिल के दर्द धो देती है...कई बार सुना है
कि इसी रास्ते से मन का आसमान साफ होता जाता है....
तो खुल गया है आसमान...धूप निकल आई है.....
कि तुम्हारे आने और जाने के बीच सदियों के फासले भी मेरी परवाह का हिस्सा नहीं अब....कि किसी और मोहब्बत में मुब्तिला प्यार करने वाले शख्स को देखकर ये अफसोस भी नहीं कि तुम ऐसे क्यूं नहीं हुए....
छोड़ देना जितना आसान...उतना मुश्किल भी तो होता है.....
पर मुश्किलों से जिंदगी आसान होती है....तो ये जो खत के आखिर में खाली स्पेस है ना.....जिंदगी में भी ऐसा ही खाली स्पेस छोड़ दिया है.....
कभी भर पाई तो उसे आसमानी रंग से भरूंगी......
तुम अब ख्याल में नहीं हो....
यकीन मानों फार्मली कह रही हूं....... अपना ख्याल रखना.....
( खत लिखिए....जरुर लिखिए कि लाल डिब्बे की उदासी टूटे)
....

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