सुन कर अनसुनी कर दी गई दरवाजे की दस्तकें... जानकर मिस कर दिए गए कॉल... मैने नही देखा झरोखे से बाहर.. कि तुम्हारे होना अब होना नही है मेरे लिए ..कि इतने बरस... .वक्त फिसला नही था हाथों से. ं... मुट्ठी में जमा होता रहा तजुर्बा बनकर....तुम्हारे इंतज़ार में जागती नदी अभी अभी करवट लेकर सोई है.... आसमान का शामियाना उतारा जा रहा है.हौले हौले.. ....सितारों की बारात खामोश लौट चुकी है....और वो सारे पुल समेटे जा चुके हैं.... कि जिन पर किसी हीर को पूरी सांझ रांझे को तकते रहना था.....
आसां नही होता प्यार को... प्यार से कह पाना.... अलविदा..
एक अधूरा कहानी का हिस्सा....
# मुहब्बत वाले दिन के सद्के
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