# world poetry day
सड़कें कभी करती होंगी उस राहगीर का भी ज़िक्र
जिसने अपनी आधी उम्र
तय वक्त से
उस सड़क को नापते गुजारी
और फिर उस राह से
तोड़ ली यारी....
जिसने अपनी आधी उम्र
तय वक्त से
उस सड़क को नापते गुजारी
और फिर उस राह से
तोड़ ली यारी....
सड़कों के किनारे
रोज सुबह मुस्कुराती दुकानें
पूछती होंगी क्या
कि कई दिनों से
सुबह में क्यूं दर्ज नहीं
वो एक चेहरा
रोज सुबह मुस्कुराती दुकानें
पूछती होंगी क्या
कि कई दिनों से
सुबह में क्यूं दर्ज नहीं
वो एक चेहरा
दफ्तर की सीढियों को
क्या होता होगा मलाल
कि इन सीढियों से गुजरने वाले
एक जोड़ी पैर
कहां गुम हो गए .....
क्या होता होगा मलाल
कि इन सीढियों से गुजरने वाले
एक जोड़ी पैर
कहां गुम हो गए .....
आसमान के माथे पर भी
आती होंगी क्या सिलवटें...
कि उसे उम्मीद से तकने वाली
आंखो ने मूंह मोड़ लिया है....
आती होंगी क्या सिलवटें...
कि उसे उम्मीद से तकने वाली
आंखो ने मूंह मोड़ लिया है....
उस बरगद को भी आती होगी
क्या कभी हिचकी,
जिस बरगद पर बांधकर निकली थी वो
अपनी आखिरी ख्वाहिश
क्या कभी हिचकी,
जिस बरगद पर बांधकर निकली थी वो
अपनी आखिरी ख्वाहिश
तसव्वुर हैं सारे....
बस, उस रोज़ के लिए....
बस, उस रोज़ के लिए....
जब सिसकी बन कर आएंगे
दरिया में बहाए जाएंगें....
..
...............................शिफाली
दरिया में बहाए जाएंगें....
..
...............................शिफाली
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