ये जानते हुए भी... कि हर जंक्शन पर पनाह बस दो घड़ी की ही है....पलटकर वो भी नहीं देखेंगे जिन्हे उसने मुकाम तक पहुंचा दिया...स्टेशन.. राहगीर हैं... हम सफर नहीं... कितना सबर समेटे भीतर.... दोड रही है.... पटरियों पर पढ़ी किसी ने कभी दर्द की कोई इबारत....
# रेल सी गुज़र जाऊँ ..
No comments:
Post a Comment