रसोई मिलाकर कुल जमा साढे तीन कमरों के उस घर में....दीवारें..सिर्फ लिहाज़ को थी...कि यहां से पड़ोस शुरु होता है और यहां घर की सरहद खत्म......बाकी लड़कियों के नी लेंथ स्कर्ट की तरह आधी ढंकी खिड़कियां...तो जैसे हर वक्त बात करने को बेताब....... सड़क पार के उस घर में तय वक्त पर बत्ती का जलना फिर बुझ जाना....कौन जानें..रजामंदी थी या इंकार......,मोटरसाईकिल की आवाज़ पर बढती धड़कनें..इश्क थी कि दहशत..कौन जान पाया....पर ऊंघते मोहल्ले में दस बजे....जब कमल शर्मा भारी आवाज़ में कहते ... गीत के बोल जांनिसार अख्तर के हैं और संगीत खय्याम का....तो जाने कितने दिल सज्दे में हो जाते....चोरी चोरी कोई आए....चुपके चुपके....सबसे छुपके ....ख्वाब कई दे जाए....
सुनते हैं कि जो इश्क इज़हार नहीं पाते...वो बरसों लूप मे सुने जाते हैं...
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