Saturday, April 28, 2018

जिंदगी छूटी थी यूं......

वो भागती हांफती सड़क
उम्र का पुल पार कर गई
पहुंची उस पार
जहां बहुत सा अधूरा पूरा होना था
जुबां पर अटके 
अल्फाज़
कानों से उतरकर दिल तक पहुंचने थे
किताब में नहीं
अधखुली चोटी में सजने थे गुलाब
सर्द हथेलियों को
सीले हाथों में मुस्कुराना था
और आंसूओं से भींगनी थी
हल्के नीले रंग वाली तुम्हारी कमीज़
आंखों की गुस्ताखियां मुआफ की जानी थी
खोली जानी थी हालात की गिरहें...
वक्त के शिकवे शिकायतों को झील में सिराया जाना था
फिजिक्स के फार्मूले से पहले
हमें सुलझानी थी अपनी इक्वेशन्स
क्लासरुम में छिपकर लिखे गए तमाम खत
हर्फ हर्फ हकीकत हो जाने थे
इश्क, को मुकाम मिल जाने थे.....
मगर ये हो ना सका....
कि बस ख्याल था ये
एक सड़क के फासले पर
जिंदगी छूटी थी यूं......
शिफाली

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