सड़क से तुम गुजर रहे थे
और मैं फिर भी खिड़की पर नहीं आई थी
और मैं फिर भी खिड़की पर नहीं आई थी
बरसात से भीगी मिट्टी में
चाहते हुए भी नहीं लिक्खा जब तुम्हारा नाम
चाहते हुए भी नहीं लिक्खा जब तुम्हारा नाम
दिल की आहट को अनसुना कर
जब छोड़ दिया पलटकर देखना
जब छोड़ दिया पलटकर देखना
कागज़ पर अधूरे ही छोड़
दिए थे वो सारे ख्याल
जो पूरे हो जाते तो
तो मुकम्मिल हो जानी थी एक कहानी
दिए थे वो सारे ख्याल
जो पूरे हो जाते तो
तो मुकम्मिल हो जानी थी एक कहानी
यकीन करों,
बेरूखी के उन्ही लम्हों में
उपजा था प्रेम कहीं.......
बेरूखी के उन्ही लम्हों में
उपजा था प्रेम कहीं.......
शिफाली की कविता ❤️
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