धरती जिस रंग की चादर पहनें,
गुनगुनी धूप में सो जाती है....
किताब में जो महफूज़ रक्खे हैं,
तुम्हारे दिए हुए
उन फूलों का रंग भी तो वही था ना...
ये और बात कि वो फूल तुम्हारे जज़्बात की आधी बयानी रहे..
उसी रंग की चूनर ओढे
उतरते रहे मेरी उम्र के तमाम बरस...
हां वही रंग...कि जिसे पहनकर बित्ते भर की नोनी दौड़ लगाती है...
हां वही रंग कि जिसमें, हथेली रंगती है, घर की देहरी पे छूट जाती है
उसी रंग से रंगे थे पांव....
बाबूजी जब रोए थे ....
वही रंग जिसनें, बंजर नीदों में सपने बोए थे....
हां वही रंग फिजाओँ में लौट आया है....
मेरी लकीरों में लिक्खा....
तुम्हारे नाम का रंग
...............शिफाली
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