अंडे के उच्चारण पर भी निषेध से लेकर जन्मदिवस पर सुंदर कांड तक संस्कारों में ये भी जाना कि बाकी बच्चों के मुकाबले हमारे लिए दुनिया की बहुत सी चीज़ें वर्जित हैं, और बहुत से मामलों में हम बाकी सबसे श्रेष्ठ, वजह सिर्फ एक की हम, कुलीन ब्राम्हण हैं। तो बचपन से मिले कई सारे इंजेक्शन्स का असर कि स्कूल से लेकर कॉलेज और शुरुआती दौर में प्रोफेशन तक शर्माओं, मिश्राओं, उपाध्यायों, दीक्षितों, भारव्दाजों ( जो पंडित सरनेम छूटे वे शामिल समझें) में स्वप्रेरित भरोसा भाव रखा मैने, भरोसा टूटा या बना इस सवाल को मुल्तवी रखिए। .., फिर तीखे मीठे अनुभवों से आंख खुली तो जाति की देहरी और धर्म के दायरे मिथ्या हैं इस नतीजे पर पहुंची ...और उन्ही दिनों अपनी बायलाईन में से खुद ही शर्मा डिलीट कर दिया था मैने.....फिर ब्याह के साथ जैसी की सनातन परंपरा रही है मेरे नाम के साथ एक नया सरनेम जुड़ा...जाहिर है उसे भी पंडित ही होना था....खैर ये पूरा खाका खींचने का अर्थ बस इतना कि कल शाम, उच्च कुलीन ब्राम्हण की मेंटल कंडीशनिंग के साथ पाली पोसी गई एक लड़की को लगा फिर एक जोरदार झटका, कि ब्राम्हणों में भी निम्न और उच्च ब्राम्हण के बंटवारे हैं.....
खैर तसल्ली हैं कि ये सुनने जानने से पहले मैं शिफाली हूं....., हो चुकी....
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