Saturday, April 28, 2018

बीतने से पहले.... रीतना नहीं है

चेहरे पर उदासी लिए अपनी बारी के इंतजार में खड़े जंगल
कि जैसे जानते हैं
कि उनकी हरी पीली हंसी से ही थे
सारे मौसम खुशनुमा
कि जब तक छांव हैं....
बस उतने ही दिन
भागते दिन की की ठांव है हम
वो जानते थे कि मौसम का बदलना
उनके लिए
सिर्फ पत्तियों का झरना नहीं,
शाखों का गिरना नहीं है....
जब दिन छूटेंगे
वो तनों से भी टूटेंगे
जड़ों से भी छूटेंगे
तो जब जब मौसम उनके हिस्से आया
उन्होने खींचकर बादलों को चूमां
अपने करीब बुलाया...
भींच ली, शाखों में मुट्ठी भर बूंदे...
हंसे खिलखिलाए..
झूमे इतराए ....
कि बीतने से पहले....
रीतना नहीं है......
शिफाली

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