अपनी ही चमक से ऊबा सूरज
अब रात में निकलना चाहता है....
चांद को धूप सेंकने की जिद है
नदी करना चाहती है किनारे से निबाह
सड़कें ठहरने को बेताब. हैं.
कि इत्मीनान में बैठें
बन जाएं मील का पत्थर
दोपहर लंबी शाम होना चाहती है
रात होना चाहती है गुनगुनी सुबह
सिंदूर में रंगी लड़की
आसमानी रंग होना चाहती है.....
....... शिफाली
अब रात में निकलना चाहता है....
चांद को धूप सेंकने की जिद है
नदी करना चाहती है किनारे से निबाह
सड़कें ठहरने को बेताब. हैं.
कि इत्मीनान में बैठें
बन जाएं मील का पत्थर
दोपहर लंबी शाम होना चाहती है
रात होना चाहती है गुनगुनी सुबह
सिंदूर में रंगी लड़की
आसमानी रंग होना चाहती है.....
....... शिफाली
शिफाली हूं की कविता❤️
No comments:
Post a Comment