Saturday, April 28, 2018

सर्द मौसम के गुले - शफ़्फाफ की मानिन्द,

सर्द मौसम के गुले - शफ़्फाफ की मानिन्द,
अपने लक़ब की सी मासूम,
लहक और दिल मानूस दोनों में,
शिफ़ाली,तुम्ही हो आदाबे-अदबो-सहाफ़त
इक इस्में बाँग्ला जैसे तुम्हारी
अदा और हयात का तर्जुमान हो
जो बेनूर हैं ज़िन्दगी में कैसे भी
चाहें तो तुम उन्हे अपना रंग वक्फ कर दो
अपनी नामानिगारी से जो तुमने,
आवाज़ दी वो सदा- ए- बशर की है
धड़कते दिलों को थाम लेने वाले
तुम्हारे लफ्ज़े हरारत मैंने सुर्ख होते देखे हैं...
सर्द और तपन दोनों की हमनवाँ
क्या बेजोड़ नमूना हो तुम क़लम का,
रुदाद और खुशी हों एक जमा
क्या कोई करेगा जो तुमने किया है...
अपने नाम के मुताबिक तुम शिफ़ाली
उस रंग की रहनुमा बनी रहो
जिसमें जो कोई रंग डाल दे
और रंग ए शफ़्फ़ाफ वैसा ही हो जाये...
( मेरी तेहरीर से रुबरू होकर,मेरी तक़दीर की धूप छाँव के साथ मेरे मिज़ाज को जानने परखने वाले मेरे एक दोस्त ने मुझ पर ये एक नज़्म लिख्खी है....यूँ दुनिया में कामयाब लोग ही ज़िन्दा रहते नज़्म और कविता में उतर पाते हैं...मेरा नसीब है...कि इस नज़्म के साथ मुझे ये खुशकिस्मती बेनामी में ही मिल गई है....shukriya Akhlaq Usmani

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