Saturday, April 28, 2018

मैं गौरा नहीं बन पाई



इस शर्मिंदगी के साथ है ये पोस्ट कि पढी लिखी जागरुक होने के बावजूद में तो गौरा नहीं बन पाई.... बावजूद इसके कि पहले गैमन इंडिया और फिर स्मार्ट सिटी के दायरे में आए मेरे घर और मोहल्ले के हजारों नीम आम, पीपल, अमरुद इंजेक्शन देकर सुखा दिए गए.... मेरे घर का नीम हांलाकि अभी बाकी है .....पीछे के आंगन में लगा सहजन भी खैर मना रहा है....लेकिन सारे, बस चंद रोज़ की मोहलत पर ......यहां, ये तस्वीर सिर्फ इसलिए चस्पा कर रही हूं...कि 1973 में महिलाओं की जिद पर शुरु हुए चिपको आंदोलन का ये सबक किस किताब में छोड़कर भूल गए हम .....कि हर कीमत पर हाइटेक होने की जिद में, हमने अपने हाथों से मिटाया अपनी दुनिया से हरा रंग...... सूरज को हाईराईज़ बिल्डिंगों का निवाला बनाया ....तो तसव्वुर कीजिए कि अबकि जब आषाढ लगेगा....बादल आएंगे....कांक्रीट के जंगलों से टकराएंगे....टूटेंगे...बिखर जाएंगे.....

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