हाथों की लकीरों में
सुकून की पनाह नहीं ,
मंज़िल के निशाँ तलाशती
दौड़ती रहती हूँ दिन रात यूँ ही
सोचती हूँ कि माँ क्यों कहती थी...
तेरे तलवों में राज रेखा है.....
Friday, November 21, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अर्ज़ किया है.....
5 comments:
शिफाली,
ज़िंदगी की जंग में हथेली की लकीरें कब माथे की शिकन में बदल जाती हैं... पता ही नहीं चल पाता... माँ भी गुज़री होगी इस दौर से, लेकिन ख़ुद पर बीती को बदलने की उम्मीद और किससे करे... शायद तुम्हारे ज़रिये ही जगा पाती हो... तकदीर बदलने की उम्मीद...!
मां, जो नंदलाला को पानी की चांद की छवि दिखाकर उसका मन बहलाती है। वहीं बिटाया को जिंदगी की क्रूरता में भी खूबसूरती दिखा मन बहलाने का प्रयास करती है। आपके साथ भी आपकी माँ ने यही किया होगा...क्योंकि माँ चाहती है पथरीली हकीकत के डरावने सपने की जगह बिटिया ख्वाब सुनहरे देंखे...क्या पता किस दिन ये ख्वाब सच हो जाएँ...और आपमें वो माद्दा है जो ख्वाबों को सच कर सकता है....आखिर जिद्दी और जुनूनी जो हैं आप...
kahani kismat ki
Post a Comment