Friday, October 31, 2008

ये जगबीती भी है...आपबीती भी..लड़की होना और फिर एक ऐसे पेशे में होना जहाँ लड़की इनदिनों तेज़ी से ग्लैमर में बदल रही है...इस लड़की होने का इस्तेमाल आता हो...तो मंज़िल आप तक पहुँचाई जाती है...वरना लड़की होने के बोझ के साथ..हर रास्ते से खुद को बचाते सहेजते...हर बार अपने मुकाम से कुछ पहले सफर खत्म हो जाता है...क्यों हो जाता है...जवाब कभी नहीं मिला....आज भी नहीं जब अपने लड़की होने के फायदे को दरकिनार करके मेरे मैं होने के अहसास के साथ जैसे भी हूँ...अपने वजूद को बचाने जूझती रहती हूँ,....कभी बाहर कभी भीतर चलती रहती है लड़ाई..क्या सही है क्या गलत...कोई नहीं बताता...जो जीता वो ही सिकन्दर फिर कौन पूछता है सिकन्दर किसने बनाया...क्यों बनाया...और कैसे बनाया...आपके संघर्ष पर आपकी समझ पर सहानुभूति तो मिलती है...लेकिन आपके समझौते ना कर पाने की ज़िद ये मौका ही नहीं देती कोई आपको सिकन्दर बनाये....अखबार के ज़माने से देखा है...कलम थामने की कोशिश कर रही एक लड़की हो तो संपादकों को उसमें आग दिखाई देती है...वो कलम पकड़ भी नहीं पाती और संपादक उसकी खबर संभाल लेते हैं...फिर भी अखबारों में गुँजाइश कम थी...टीवी चैनलों में मौके बढ़ गये हैं...लड़कियो के लिये...उनके भविष्य के लिये और उनके इस्तेमाल के लिये...कोई लिखना सिखाता है...कोई बोलना....कोई अपनी खबर उसके नाम कर देता है...मुमकिन है कुछ भी, बशर्ते लड़की बन जाओ....नहीं लड़की तो हो...लेकिन होना काफी नहीं...अपनी खुद्दारी को घर छोड़ के आओ...रिझाओ..इठलाओ...दुनिया तुम्हारे कदम चूमेगी...तो क्या हुआ जो तुम खुद से निगाह भी ना मिला पाओगी...

5 comments:

नीरज श्रीवास्तव said...

शिफाली,
लड़की होने और होने के फायदे समझने में वाकई फर्क है... इस फर्क के फायदे समझने वाले तरक्की हथियाने में कितने भी ऊपर पहुँच जायें... लेकिन अपनी नज़र में गिरने के बाद ऊँचाई के क्या मायने... आपकी तकलीफ सही है और ये तकलीफ सिर्फ आपकी नहीं... हम सबकी है, लेकिन सीधे रास्ते अपनी सीढ़ी चढ़ना उस मंजिल तक ले जायेगा... जहाँ मंजिल पाने के लिए तय किये गये रास्ते का भी मायना होगा... आमीन !

श्रुति अग्रवाल said...

शिफाली एक दूसरा दर्द भी है..अच्छी लड़की होने का एक ठप्पा लगा दिया जाता है। हर काम करने से पहले लोग आपको डिफेंड करने लगते हैं। यदि उन्हें यह समझा दिया जाए कि आप खुद कैपेबल हैं तो झांसी की रानी का ताना दिया जाता है। क्यों भई! वहीं दूसरी और कुछ लड़कियों द्वारा अपनी गर्लिश छवि को भुनाने के चक्कर में आपको भी गलत समझ लिया जाता है...इस चक्कर में पत्रकारिता में अपना आसमां तलाश रही जमीनी पत्रकारों को रोज एक कड़वे सच से रूबरू होना पड़ता है....लेकिन इन कड़वी सच्चाईयों से रोज रूबरू होते हुए खुद को अपनी नजरों के दर्पण में निहार पाती हूँ यहीं मेरी कामयाबी है। यही तुम्हारी कामयाबी है...यही हम जैसी हर लड़की की कामयाबी है फिर चाहे वह पत्रकार हो या कोई अन्य प्रोफेशनल

राजीव करूणानिधि said...

कतरा कतरा शबनम गिन के क्या होगा दरियाओं की दावेदारी किया करो
रोज़ रोज़ वही एक कोशिश जिन्दा रहने की, मरने की भी तय्यारी किया करो...
Log kya kehte hain...kya fark padta hai...bas aage badhte rahiye..

Unknown said...

aapne layout kyon change kardiyaa........

Neeraj Badhwar said...

sahi hai.