Thursday, July 19, 2012


आनंद मरा नहीं करते..


अपनी तसल्ली के लिए कह लेते हैं कि काका मरे नहीं, लेकिन जिए भी कहां। अपने ही संवाद के मुताबिक राजेश खन्ना ने,ना बड़ी जिंदगी जी,ना ही बहुत लंबी।  काका से भी उम्रदराज हो चुके कई सितारे, अभी इसी दुनिया में हैं, और खुशगवार जिंदगी गुजर कर रहे हैं।  राजेश खन्ना की उन्हत्तर बरस की उम्र में हुई मौत पर उनके चाहने वालों ने शायद उतने आंसू ना बहाए हों, जितना दुख उनकी मौत के बाद उनकी जिंदगी को लेकर हुए इस खुलासे से हुआ कि राजेश खन्ना ने अपनी इस उम्र की आधे से ज्यादा पारी तन्हाई में गुजारी थी। राजेश खन्ना को क्या बीमारी थी इसकी ठीक ठीक जानकारी किसी को नहीं है।खुद उनके परिवार वाले भी इस पर खामोश ही हैं। लेकिन जो सामने है और जो दिखाई दे रहा है,वो उनका अकेलापन था, जो उनके लिए लाइलाज बीमारी बन चुका था। जिंदगी का कन्ट्रास्ट वो नहीं झेल पाए थे। एक तरफ टेक्नीकलर ख्वाब की सी रंगीन दुनिया। आनंद की एक झलक के लिए दीवानी दुनिया। वो दुनिया जिसमें सिर्फ कामयाबी के किस्से थे, शोहरत की बुलंदिया थी। इस दुनिया में चाहने वालियों की वो कतारें थी, जो अब तक किसी सितारे को नसीब नहीं हुई। एकतरफा मोहब्बत की जाने कितनी कहानियों के नायक थे राजेश खन्ना। जाने कितने कुंवारे सपनों के राजकुमार। ये काका की जिंदगी की फिल्म का पहला हाफ था। इंटरवेल के पहले का वो हिस्सा। जिसमें एक सुपरसितारा, आसमान पर चलता रहा। जमीन दिखाई भी नहीं दी और जमीन पैरों तले आई भी नहीं। लेकिन इस जिंदगी में इंटरवेल के बाद की फिल्म में,किरदार,संवाद ही नहीं, पटकथा भी पूरी तरह बदल गई थी। कमर्शियल मसाला फिल्म की जगह जैसे किसी समानांतर सिनेमा ने ले ली हो। मध्यान्तर के बाद की इस फिल्म में सितारा जमीन पर आ जाता है। हार जाता है। गुमनाम होता जाता है।और दे जाता है कभी ना खत्म होने वाला अकेलापन। शिखर पर पहुंचने के बाद शिखर, छूट भी जाए, लेकिन ऊंचाई पर होने का गुमान बना रहता है, और यही गुमान सबसे दूर कर देता है। अपने मुश्किल दिनों में, दर्द साझा करने के बजाए काका अकेले हो गए। जो हार वो खुद बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे, उसे दुनिया को दिखाना भी नहीं चाहते थे। लेकिन वो भूल रहे थे कि चाहत आसमान और जमीन नहीं देखती, राजेश खन्ना की तिरछी मुस्कान पर मर मिटने वाली,तो आज भी अपने नाती पोतों से नजरे बचाती, कहीं किसी कोने में सुबक कर रो रही होंगी। जाने कितनों की पहली और आखिरी मोहब्बत थे राजेश खन्ना।
याद कीजिए फिल्म आनंद के किरदार में मौत से हंसते हंसते जूझने वाले राजेश खन्ना को। तीन घंटे की उस फिल्म में इस सुपर सितारे ने मौत को छोटा और जिंदगी को बड़ा बना दिया था। लेकिन इसके बिल्कुल उलट अपनी असल जिंदगी में आनंद के फलसफे को भूला दिया था जैसे।  हार से मिली निराशा और अकेलेपन के दर्द को गले लगा लिया काका ने। कितनी अजीब बात है एक फिल्म में जो फनकार सारी दुनिया को मौत से जूझने और जीतने की सीख देता था। खुद अपनी जिंदगी से,वो पल पल हारता रहा, मौत फिर भले, अठारह जुलाई की तय तारीख को दोपहर बाद दबे पांव उनके घर आई हो।
राजेश खन्ना का जाना,पब्लिक लाइफ को जीने वालों के लिए भी एक है। सबक ये कि जिंदगी हमेशा चमकीले दिन ही नहीं दिखाती, उम्र के सफर में उदासी की सांझ भी आती है। उदासी की इस सांझ से हंसते मुस्कुराते गुजर जाना ही आनंद हो जाना है। तभी तो कहते हैं कि आनंद मरा नहीं करते। राजेश खन्ना यकीनन बीत जाते हैं।

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