दो दिलों से शुरु होती रही प्यार की कहानी तो वही है....लेकिन रुह से निकलकर इश्क अब जिस्म हो गया है.... इश्क बदला तो बदल गया इज़हार ए इश्क का अंदाज़ भी....संत वेलेन्टाइन डे की कृपा हुई तो अपने दिल की ज़ुबाँ को आवाज़ देने तय हो गया दिन भी...प्यार के सहारे बाज़ार भी चल निकला...और भगवाधारियों की सियासत भी जिन्हे मोहब्बत के इस खास दिन खिलाफत के ज़रिये मिलती हैं सुर्खियाँ....लेकिन इन सारे तमाशों को देखते हुए सोचियेगा ज़रा क्या यही प्यार है.....
याद कीज़िये ज़रा वो ज़माना जहाँ दो फूल मिलते....और दो दिलों में प्यार हो जाता.....इज़हार ए मोहब्बत की हद दिखाने में एक मुद्दत तक शर्माता रहा सिनेमा भी....लेकिन समाज में वक्त के साथ ऐसा खुलापन आया...कि सरेआम हो गये प्यार के नज़ारे...पार्कों और बगीचों में हफ्तों और महीनों में बदलने वाला प्यार.....रुह से महसूस होने वाला अहसास था कभी, अब जिस्म की कहानी हो गया... ......वो वक्त भी था जब ज़ुबाँ खामोश रहती थी...फकत बोलती थी आँखे .....और प्यार हो जाता था...ज़ुबाँ तो अब भी खामोश है...लेकिन दो दिलों की बोली बाज़ार बोल रहा है....चीख चीख कर....हिन्दी फिल्मों में खिलौना समझकर दिल टूटा करता था...यहाँ खिलौनों के सहारे दिल मिलते हैं....पहले प्यार आया....फिर प्यार में बाज़ार...लेकिन इस तरह कि अब लगता है कि अगर बाज़ार ना होता तो मोहब्बत करने वाले इश्क के इज़हार के लिये ज़ुबाँ कहाँ से लाते......पॉश के लफ्ज़ों में प्यार करनाऔर लड़ सकना जीने पर ईमान ले आना , यही होता है धूप की तरह धरती पर खिल जानाप्यार करना और जीना उन्हें कभी नहीं आया जिन्हें ज़िन्दगी ने बनिया बना दिया....पर कौन यकीन करेगा इस ज़माने में कि सबकुछ खो देने के बाद जो आँखों से आँसू बनकर छलकता है...वही तो प्यार होता है.....
Friday, February 13, 2009
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5 comments:
वाह जी वाह बेहतरीन शब्दों से बेहतरीन रचना के रूप से नवाजा है प्रेम को अति सुंदर
मन से
दरअस्ल बैलंटाइन डे मनाने वाले प्रेमी प्रेमिका प्यार को समझतें कहां है। शार्ट कट की संसकृति का यह जनून गिफ्ट लेने एवं देने तक ही है। कवि हुक्का की दो शब्द एवं चार पंक्ति की कविता इसकी सच्चाई बताती है।
मै
तू (दोनो का प्यार)
तूमै ( विवाह)
तू तू मै मै ( परिणाम )
ठीक कहा आपने...इसी पर मैंने भी लिखा है...
"प्यार में अब कहाँ वो शरारत रह गई।
अब कहाँ वो छुअन वो हरारत रह गई।
लैला और शिरी के किस्से पुराने हो चले ,
अब कहाँ वो शोखियाँ वो नजाकत रह गई,
प्यार किया जैसे एहसान हो भला,
शुक्रिया तो गया शिकायत रह गई।"
prem aur bazar ka taal mel jo samay ne bithaya hai..woh hi aapke in panno main aaya hai...pyar anokha(Antique)hota hai.jo sahi dekh rekh aur sahi sthan chahta hai..tabhi uski sundarta bani rahti hai...ek dhool ki parat usko kabaad kar sakti hai...khair..aapne apne shabd kosh ka sundar upyog kiya hai...
बाप रे सब गड्डमड्ड हो गया
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