Saturday, May 17, 2008

मोहल्ला.......,मेट्रोज़ में अब इस पर कॉलोनी नाम की कलई चढ़ गई...लेकिन इस मोहल्ले की बात ही और है... रोटी पानी की भागदौड़ में,वो अपनापन और सुकूँन देने वाला मेरा मोहल्ला.... इधर हफ्ते भर पहले जब माँ के घर जाना हुआ....तो देखा मेरा मोहल्ला खाली हो रहा है....बाबूओं की बस्ती खाली कर देने के सरकारी फरमान के बाद...रोज़ एक घर एक ट्रक में उँडेला जाता है....एक ट्रक में एक टूटी अलमारी,पलंग,बरतन ही नहीं जाते....यादें भी जा रही हैं...बचपन जा रहा है...मध्यप्रदेश बनने के बाद छोटे छोटे गाँवों कस्बों से इस शहर में आकर अपने संघर्ष साझा करने वाले मेरे पिता के साथी जा रहे हैं....मेरे कई सारे चाचा जा रहे हैं....दो चार साल बड़े वो भाई जा रहे हैं...जो खुद ही मोहल्ले की बेटियों की हिफाज़त करने की जवाबदारी ले लिया करते थे...सरकार की नज़र में बूढ़े हो चले इस घर में ही तो मेरे पिता बूढ़े हुए....और उनका बेटा मेरा भाई खुद पिता बन गया...मित्रा बाबू का वो मकान भी खाली हो गया...जिसमें बूबू पाकू के साथ मैंने घर घर खेलना सीखा था....गृहस्थी का पहला सबक था वो खेल...दूध से जले हाथ पर मरहम लगाने वाले निगंम अंकल मकान छोड़ने से कुछ दिन पहले दुनिया ही छोड़ गये...लेकिन टिमी लिमी जा रही हैं...मुझसे बहुत छोंटी...मेरी दोस्त जिनकी बदौलत मेरा बचपन उम्र बीत जाने के बाद भी बरकरार रहा...गर्मियों के दिनों में स्कूलों की छुट्टियाँ लगने के बाद हमारे मोहल्ले में बेटियाँ भी माँ के घर लौट आती हैं...अबकि अपने घर मोहल्ले दीदी आखिरी बार आई हैं...और अपनी आँखों के आगे उस घर आँगन को उजड़ते देख रही हैं... जिस घर में उनके सपनों की बारात आई थी...जिस घर से उठी थी उनकी डोली....अब पिता की उम्र भर की कमाई के बंगले कहाँ बन पायेगा माँ का घर...इस छोटे से घर में एक कमरे की कमी हमेशा होती थी...लेकिन कभी मेहसूस नहीं हुआ कि बड़ी हवेलियाँ भी उस छोटे से मकान की जगह नहीं ले पाएंगी...एक और बात हवेलियों बंगलों में अब सब अपनी अपनी हैसियत से बड़े छोटे हो जायेंगे...मेरे मोहल्ले के उन झाड़ियों में सिर दिये मकानों में सब एक थे...सबके घर एक से,दीवारें एक सी...और आँगन एक से...दिवाली की खुशियाँ एक सी...होली के रंग एक से...पर अब सब बदल जायेंगे...पता नहीं जब मेरे घर की छाती पर खड़ा होगा मल्टीप्लेक्स तो मेरी नानी के लगाये आम का क्या होगा....नन्ना के घर के जाम का क्या होगा....और आँगन में लगी उस नीम का क्या होगा...जिसकी छाँव में हम सात भाई बहनों ने स्कूल से कॉलेज तक खत्म किया...अम्मा के सामने तो बावन साल जैसे किसी फिल्म के फ्लशबैक की तरह गुज़र गये...कहती है...अभी तो आये थे ग्वालियर से...घर छोड़ के जाने की घड़ी भी आ गई...सरकार के लिये होंगे सिर्फ साऊथ टीटी नगर...नार्थ टीटी नगर के बंटवारे में भोपाल की बाबूबस्तियाँ....लेकिन हमारा तो ये मोहल्ला है....खेलना कूदना...लड़ना जूझना, मोहब्बत सिखाने वाला मोहल्ला....कमल गुड्डू का मोहल्ला...जोशी शर्मा का मोहल्ला....मेरा मोहल्ला ....जहाँ इनदिनों ट्रकों में भरकर सिर्फ सामान नहीं,ज़िन्दगी के सुनहरे दिन जा रहे हैं...

2 comments:

Dankiya said...

aise kai mohalle ujaad ho jate hain...shehar se metro banane ki kawayad mein...!is pati ne yaad dila diya apna mohall Nani ka Mohalla....gunguni dhoop mein batiyate aangano ka mohalla.

shukriya
sudhir
aapka mohalladar

राजेश उत्‍साही said...

sachmuh aapne TTnagar ki totti coloniyo ka ek naya chehra hi samne rakh diya hai.
Rajesh utsahi