किसी ने भाई को खोजा
किसी ने बाप का साया
किसी ने प्यार साजन का
मेरे संसार मे पाया
कोई जब हो गया आहत
यहाँ पहुंचा मिली राहत
कोई था दूर सपनो से
कोई हैरान अपनों से
उन्ही मे से हैं कुछ आज
जैसे गीत के संग साज़
वो आकर जब इक्कठे हों
ठिठोली ,हंसी ठठे हों
सभी आज़ाद होते हैं
यूँ हम आबाद होते हैं
नहीं हम कुछ भी हैं वरना
हुआ जीना ,की जयूँ मरना
मगर अब हमने है जाना
हमारी भी क्या हस्ती है
है इक वीरान दिल लेकिन
उसी मे खूब मस्ती है
अकेले मुझमे शामिल
वाह, कितने लोग रहते हैं
रहीं ख्वाइश अधूरी जो
तो ये तो योग रहते हैं
हमारी कुंडली नीची
हैं रेखाएं कटी सारी
तभी तो भाग्य से पायी
ना उम्मीदी औ लाचारी
खुदा तू इस तरह से
किसी को लाचार मत करना
सुनो लाचार लोगों
तुम किसी से प्यार मत करना
.............................................................अनिल गोयल
ऐसी ही है अनिल जी की दुनिया...,है इक दिल जिसमे शामिल जाने कितने लोग रहते हैं...उन्ही बेगानों अपनों के नाम कोई पांच साल पहले लिखी उनकी ये नज़्म मेरे हाथ लग गयी...कई साल तक डायरी मे महफूज़ रही .......पर अब आपकी नज़र है......
Wednesday, December 23, 2009
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4 comments:
बढ़िया रचना , बधाई ।
अनिल गोयल जी की नज्म बेहतरीन लगी. प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचना है....बधाई।
अकेले मुझमे शामिल
वाह, कितने लोग रहते हैं
रहीं ख्वाइश अधूरी जो
तो ये तो योग रहते हैं
शैफाली आप ब्लॉग पर कम ही होती हैं
लेकिन अक्सर खूबसूरत इबारतें लाती हैं
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