Wednesday, December 23, 2009

किसी ने भाई को खोजा
किसी ने बाप का साया
किसी ने प्यार साजन का
मेरे संसार मे पाया
कोई जब हो गया आहत
यहाँ पहुंचा मिली राहत
कोई था दूर सपनो से
कोई हैरान अपनों से
उन्ही मे से हैं कुछ आज
जैसे गीत के संग साज़
वो आकर जब इक्कठे हों
ठिठोली ,हंसी ठठे हों
सभी आज़ाद होते हैं
यूँ हम आबाद होते हैं
नहीं हम कुछ भी हैं वरना
हुआ जीना ,की जयूँ मरना
मगर अब हमने है जाना
हमारी भी क्या हस्ती है
है इक वीरान दिल लेकिन
उसी मे खूब मस्ती है
अकेले मुझमे शामिल
वाह, कितने लोग रहते हैं
रहीं ख्वाइश अधूरी जो
तो ये तो योग रहते हैं
हमारी कुंडली नीची
हैं रेखाएं कटी सारी
तभी तो भाग्य से पायी
ना उम्मीदी औ लाचारी
खुदा तू इस तरह से
किसी को लाचार मत करना
सुनो लाचार लोगों
तुम किसी से प्यार मत करना
.............................................................अनिल गोयल
ऐसी ही है अनिल जी की दुनिया...,है इक दिल जिसमे शामिल जाने कितने लोग रहते हैं...उन्ही बेगानों अपनों के नाम कोई पांच साल पहले लिखी उनकी ये नज़्म मेरे हाथ लग गयी...कई साल तक डायरी मे महफूज़ रही .......पर अब आपकी नज़र है......

4 comments:

Mithilesh dubey said...

बढ़िया रचना , बधाई ।

महेन्द्र मिश्र said...

अनिल गोयल जी की नज्म बेहतरीन लगी. प्रस्तुति के लिए धन्यवाद

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है....बधाई।


अकेले मुझमे शामिल
वाह, कितने लोग रहते हैं
रहीं ख्वाइश अधूरी जो
तो ये तो योग रहते हैं

Sandeep said...

शैफाली आप ब्लॉग पर कम ही होती हैं
लेकिन अक्सर खूबसूरत इबारतें लाती हैं