अर्ज़ किया है.............,
ग़ालिब साहब का मशहूर शेर है,
इब्ने मरियम हुआ करे कोई,
मेरे दुख की दवा करे कोई,
जब तवक़्को ही उठ गई गालिब
क्यों किसी का गिला करे कोई........
ग़ालिब के मिसरे का दामन थामा....और मोबाइली मुशायरे में सुधीर ने कुछ शेर कह दिये....मुलाहिज़ा फरमाइये.....
जब ज़मीनों ने साथ छोड़ दिया..,
आसमानों का क्या करे कोई
रात भर इक सुबह को ढोता हूँ,
साथ मेरे उठा करे कोई,
काश होता कोई जो अपना भी...
हम जो बिखरें दुआ करे कोई.....
सुधीर
Monday, July 27, 2009
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10 comments:
वाह वाह लाजवाब बधाई
रात भर इक सुबह को ढोता हूँ,
साथ मेरे उठा करे कोई
waah bahut sunder
हाय शैफाली....कैसी हो...यार यहाँ न्यूजीलैंड में कड़कड़ाती ठंड में गरम कॉफी के साथ तुम्हारी पोस्ट पढ़ने में मजा आ गया....मिस यू गाइज एंड मिस रिमझिम बारिश टू...
सुधीर जी ने तो कमाल कर दिया , पढ़वाने का बहुत बहुत शुक्रिया
आपने अपने ब्लॉग का नाम पटिये किस से इन्सिपिरेशन लेकर लिखा है ? थोड़ी हैरानी है नाम से |
शारदा जी,मैं भोपाल से हूँ...भोपालियों की खुशमिज़ाजी,खूबसूरत झील के साथ भोपाली पटिये भी बड़े मशहूर हैं...जिन पटियों पर अल्लसुबह तक भोपाली करते हैं दुनिया जहान की बातें...वही पटिये जब मेरे लफ्ज़ों को पनाह देने लगे....तो बन गया पटिये...
श्रुति,
कोई खबर भी नहीं की...और तुम परदेसी हो गईं..लेकिन खुशी हुई..तुम्हे सुनकर..पापा पर लिखी पोस्ट देखना...आखिरी मैसेज तुम्हारा ही है उसमें...और उस एक मैसेज ने उस मुश्किल वक्त में बहुत संभाला..और जीने की नई वजह दे दी...अपना ख्याल रखना दोस्त...ईश्वर तुम्हे न्यूज़ीलैण्ड की कड़कड़ाती ठँड सहने का हौंसला दे...
श्रुति,
कोई खबर भी नहीं की...और तुम परदेसी हो गईं..लेकिन खुशी हुई..तुम्हे सुनकर..पापा पर लिखी पोस्ट देखना...आखिरी मैसेज तुम्हारा ही है उसमें...और उस एक मैसेज ने उस मुश्किल वक्त में बहुत संभाला..और जीने की नई वजह दे दी...अपना ख्याल रखना दोस्त...ईश्वर तुम्हे न्यूज़ीलैण्ड की कड़कड़ाती ठँड सहने का हौंसला दे...
सबसे पहले उसी पोस्ट को पढ़ा था...लेकिन उस पर कमेंट लिखने की हिम्मत ही नहीं हुई...बस शादी की जिम्मेदारियों में नेहा के साथ साथ कब मेरी भी विदाई का दिन आ गया पता ही नहीं चला...अपना ख्याल रखना ....अब कमेंट के अलावा ईमेल भी करूँगी
मन्मोहक कविता अतिसुन्दर.....दिल को छू गयी
सुधीर जी की लाईन्स अच्छी हैं।
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