Monday, June 29, 2009

पिता का आँगन...वो आँगन पूरी उम्र जिसमें वो जाने कितने रिश्तों के बीज बोते रहे ...कुछ रिश्ते जन्म के साथ मिले उन्हे...कुछ रिश्तों को खुद पिता ने जन्मा...प्यार और अपनेपन के धागों से गूँथा एक एक रिश्ते को...खून और पसीने से सींचते रहे...अपना वतन गाँव छोड़कर मुफलिसी में दूसरे शहर आ बसे थे वो....कुछ साल बाद वही शहर सूबे की राजधानी बन गया...और घर से बेघर होकर अकेले अपने बूते अपना आशियाना बसाने वाले मेरे पिता का घऱ ....सरकारी कामकाज के लिये सिफारिशें लेकर आने ,तमाम रिश्तेदारों का पारिवारिक गेस्ट हाउस ....चार कमरों के घर में पाँच भाई बहन का समाना मुश्किल ...लेकिन पिता का प्यार....जो आता उस घर का हो जाता...कुछ सरकारी कामकाज होने तक ठहरते...कुछ सालों के लिये बस जाते........भाई....चाचा.... फूफा...संबंधों के जाने कितने नाम और चेहरे.....कोई अफसर बन गया.....कोई डॉक्टर...कोई रुतबेवाला नेता....घर आऩे वाले इन अपनों की आवभगत में लगे रहे हम बच्चों को भी कभी अहसास नहीं हुआ कि बस इतना ही था सबका साथ।....तब कभी महसूस ही नहीं हुआ कि उम्र भऱ जिस घऱ में नाते रिश्तों का मेला देखा....वो कभी खाली भी होगा...और मेरे पिता कभी होंगे इस कदर अकेले....और अपनों से बेदखल...कि उन अपनों का इंतज़ार करते वो दुनिया से भी चले जायेंगे...पर कोई उनकी खैरखबर लेने नहीं आयेगा....ज़िन्दा रहते भी नहीं..,मौत के बाद भी नहीं...कुछ मिनिटों के लिये बिलखती शोक जताती पिता की बहन ज़रुर आईं...लेकिन समाज के बनाये सूतक में भाई के घर का पानी भी नहीं पीया गया उनसे....
भला मौत के बाद भी बदला लेता है कोई.....पर कुछ अपनों ने मौत के बाद भी उन्हे नहीं बख्शा....जीते जागते इंसान से नहीं....लाश से भी ले लिया बदला कि हम तुम्हारे शोक में आँसू बहाने नहीं आयेंगे....
आखिरी साँस तक जिनका सेहरा डोली देखने की हसरत लिये पिता दुनिया से चले गये ....वो यूँ नहीं आये कि उनके नये सुहाग पर पिता की मौत का स्याह साया ना आ जाये.....
............पूरी उम्र हर बात का सही हिसाब किताब रखने वाले पिता संबंधों के समीकरण नहीं समझ पाये....रिश्तों की जमापूँजी का हासिल कुछ नहीं ....सारे नाते तो उनकी साँसों के पहले ही साथ छोड़ गये......तसल्ली है कि अपने आखिरी दिनों में अपनी यादद्दाश्त खो चुके मेरे पापा...ये भरम लिये ही गये कि सब उनके हैं....वो जान नहीं पाये....कि उनके बनाये रिश्तों के आँगन में मेरी माँ आज अकेली खड़ी है....................

6 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

सुंदर पोस्ट .

M VERMA said...

पूरी उम्र हर बात का सही हिसाब किताब रखने वाले पिता संबंधों के समीकरण नहीं समझ पाये....
सुन्दर अभिव्यक्ति -- भावपूर्ण

समयचक्र said...

बहुत ही भावुक कर देने वाला आलेख. पितृ श्रण कभी नहीं चुकाया जा सकता है . आभार.

समयचक्र said...

Kripya Word Verification hataaye .

Dankiya said...

Rishton ke sulge chulhe mein
jeewan bhar sapne jalte hain
matlab ki roti pakti hai
angan soona reh jta hai...

bahut achhi Post shifu..

श्रुति अग्रवाल said...

गुडिया की शादी के बीच इंटरनेट देख ही नही पाई...पिता की कमी ने माँ को इतना बेजार किया कि वे बिमार हो गईं औऱ भोपाल आना कैंसल हो गया...बस आज यहाँ नए देश में इंटरनेट लगा तो तुम्हारा ब्लॉग खोला....सच रिश्ते ऐसे ही होते हैं...थोड़े दिखावटी...ज्यादा बनावटी बस जब तक काम होता रहे तब सिर आँखों पर वरना कदमों में भी जगह नहीं देते।