Friday, March 27, 2009

हाथों की चंद लकीरों का.... क्या खेल है ये तकदीरों का

हाथों की लकीरों में नहीं,तकदीर की निशानियाँ,
बस,जूझना है, टूटना है,और फिर से दौड़ना
लोग कहते हैं वक्त होता है,
वक्त का इंतज़ार है मुझको...

4 comments:

पुरुषोत्तम कुमार said...

अच्छा है.

mehek said...

bahut khub

संगीता पुरी said...

बढिया है ...

कुमार संभव said...

कम शब्दों मै शानदार अभिव्यक्ति ....... अगले पोस्ट का इन्तेज़ार रहेगा